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जैनविद्या - 20-21
8. बृहत्त्रय
पं. कैलाशचन्द्रजी शास्त्री के मतानुसार बृहत्त्रय नाम जैसा ग्रन्थ देखने को नहीं मिला ।' उनके मत में 'लघीयस्त्रय' नाम ने ही बृहत्त्रय की कल्पना को जन्म दिया। पं. जुगलकिशोरजी मुख्तार ने मत व्यक्त किया कि अकलंकदेव के तीन महत्व के ग्रंथ अर्थात्-सिद्धिविनिश्चय, न्याय विनिश्चय और प्रमाण संग्रह को ही बृहत्त्रय का नाम दे दिया हो। इस दृष्टि से यह काल्पनिक रचना समझी जाये ।
9. न्याय चूलिका
अभी तक न्याय चूलिका नामका ग्रंथ उपलब्ध नहीं है और न ही अकलंकदेव की रचनाओं में इस नाम के किसी ग्रंथ का उल्लेख हुआ है।
10. अकलंक स्तोत्र
अकलंक स्तोत्र में 16 छन्द हैं। इसमें महादेव, शंकर, विष्णु, ब्रह्मा, बुद्ध आदि देवताओं की आलोचना करते हुए वीतराग परमात्मा को निष्कलंक सिद्धकर उनका स्तवन किया है। इसके 15 एवं 16 वें पद्यों में अकलंक परमात्मा के स्थान पर शास्त्रार्थी अकलंकदेव की प्रशंसा की गयी है। स्तोत्र की विषय-वस्तु अकलंक के व्यक्तित्व एवं दार्शनिकता से मेल न खाने के कारण पं. कैलाशचन्द्रजी शास्त्री इसे अकलंकदेव रचित नहीं स्वीकारते । अकलंकदेव ने इसके अंत अपना नाम भी नहीं दिया जैसा कि अन्य रचनाओं में मिलता है ।
अकलंकदेव का साहित्य तर्क प्रधान और विचार प्रधान होकर दार्शनिक समीक्षा से ओतप्रोत है। वे अल्पभाषी थे। जो भी लिखा गहन मनन, चिंतन और अध्ययन के बाद लिखा। वे शुष्क दार्शनिक न होकर विनोदी और परिहास- कुशल थे। उन्होंने बौद्धदर्शन का खण्डन तो किया किन्तु उनके मन में विद्वेष नहीं रहा । वे आस्तिक्य-बोध से संयुक्त रहे और जैनधर्म के अध्यात्म से निरंतर केलि करते रहे। इस दृष्टि से, आज जबकि साधर्मी बन्धुओं में दृष्टि भेद के कारण सहज सहिष्णुता का अभाव हो रहा है और कुछ भी प्रकाशित करने - करवाने की होड़ लगी है, अकलंकदेव का व्यक्तित्व प्रकाश स्तम्भ-रूप में दिशा-बोध करा रहा है कि आस्तिक्य-बोधसहित सहिष्णु रहकर आत्म-कल्याण करो, जो भी लिखो सारगर्भित हो और खण्डन भी मण्डन की भावना से करो ।
1. जैन साहित्य का इतिहास, भाग 2, पृष्ठ 316
2. वही, पृष्ठ 317
3. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग 2, पृष्ठ 300
4. तत्त्वार्थ- वार्तिक भाग 1, प्रस्तावना, पृष्ठ 3
45
5. वही, पृष्ठ 99
6. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग 2, पृष्ठ 305
7. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग-1, पृष्ठ 31
8. न्यायकुमुदचन्द्र, भाग - 1, प्रस्तावना, पृष्ठ 55
9. वही, प्रस्तावना, पृष्ठ 55-56
ओ.पी. मिल्स, अमलाई - म.प्र.