________________
जैनविद्या - 20-21
अप्रेल - 1999-2000
25
अनेक अलंकरणों से अलंकृत
आचार्य अकलंकदेव
- डॉ. कपूरचंद जैन
जैन न्याय के पितामह 'प्रखर तार्किक', 'सफल तार्किक', 'चक्रचूड़ामणि', 'जिनाधीश', 'अशेष कुतर्क विभ्रमतमोनिद्लोन्मूलक:', 'तार्किक लोक मस्तक मणिः', 'समदर्शी वार्तिकार', 'स्याद्वादविद्याधिपति', तर्क भूवल्लभ', 'वादिसिंहः', स्याद्वादामोक्षध-जिह्वे', 'तार्किक चक्रेश्वर', 'ताराविजेता', 'जिनसमय दीपक', 'जिनमतकुवलय शशांक', 'जिनशासनालंककर्ता', 'महामति', 'भट्टाकलंक', 'सौगतादि खण्डनकर्ता', 'समन्तादकलंकः', 'शास्त्रविद मुनीनां अग्रेसरः', 'सूरिः', 'मिथ्यान्धकार विनाशकः', 'अखिलार्मप्रकाशकः', 'स्याद्वाद न्यायवादि', 'अशेषकुतर्क विभ्रमतमोनिनिमूकर्ता', 'अगाध कुनीति सरित शोषक:', 'स्याद्वाद किरण प्रसारक', 'अकलंक भानुः', 'तर्काब्जकं', 'विद्वदह्वदय मणिनाल:', 'प्रमाणवेता', 'नरसुरेन्द्रवन्दनीयः', 'तार्किक लोक मस्तक मणिः', 'समस्तमतवादि करीन्द्रदर्पमुन्मूलकः', 'स्याद्वाद केसरी', 'पंचाननः', 'अकलंक शशांक', 'परहितावदान दीक्षितः', 'वृत्तिकार:', 'विगलिततिमिरादिकलंकः', 'निरस्तग्रहो परागादि उपद्रवः', 'विगलित ज्ञानावरणादि द्रव्य', 'कर्मात्मकलंक', 'सकलतार्किक चूड़ामणि', 'जिनतुल्य', 'युगप्रवर्तक', 'वादविजेता', 'अकलंकधीः', 'भाष्यकार:', 'बौद्धबुद्धिवैधव्यः दीक्षागुरुः' आदि उपाधियों से अलंकृत अकलंकदेव ने किस काल में भारत वसुन्धरा को अपने जन्म से पवित्र बनाया था, यह 'इदमित्थं' कह पाना आज भी सम्भव नहीं है। हमारे प्राचीन आचार्यों ने भव्यजीवों के कल्याण का मार्ग