SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनविद्या 43. भट्टारक शुभचन्द्र ने अपने 'पांडवपुराण' (1551 ई.) में बौद्धों के साथ शास्त्रार्थ के प्रसंग में अकलंक द्वारा पादप्रहारपूर्वक घटस्थापित मायादेवी का विस्फोट किये जाने का उल्लेख किया है 20 - अकलङ्कोङ्कलङ्कः सकलौ कलयंत्तु श्रुतं । पदेन ताडितापेन मायादेवी घटास्थिता ॥ - 20-21 44. 'कर्णाटक शब्दानुशासन' के कर्ता भट्टाकलंकदेव ( 1586-1615 ई.) ने अकलंकदेव के न्याय एवं व्याकरण शास्त्र विषकयक पाण्डित्य की प्रशंसा की है। 45. अभिनव सोमसेन ने अपने 'रामपुराण' (1599) ई.) में - पूज्यपाद प्रभाचन्द्रकलङ्कादीन्यतीश्वरान् । नमामिधर्म तीर्थस्यक र्तृनप्राणिहितङकरान् ॥ पूज्यपाद और प्रभाचन्द्र के साथ अकलंक को यतीश्वर, धर्मतीर्थकर्ता और प्राणिहितंकर के रूप में नमस्कार किया है। 46. श्वेताम्बराचार्य यशोविजय (1631-1686 ई.) ने अपने 'अष्टसहस्री विवरण' आदि दार्शनिक ग्रन्थों में अकलंक और उनके न्यायदर्शन की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। 47. रामकृष्ण मिश्र ( 18वीं शती ई.) ने अपनी 'भुवनप्रदीपिका' में अकलंकदेव द्वारा तुण्डीर देश के राजा हिमशीतल की सभा में कलि 1125 पिंगल में बौद्धों को पराजित किये जाने का उल्लेख किया है। 48. चन्द्रसागर वर्णी ने तत्समय कर्णाटक देश में प्रचलित अकलंक सम्बन्धी अनुश्रुतियों को संकलित कर 'अकलंकचरिते' अपरनाम 'हिमशीतलकये' की रचना 1803-1804 ई. में सम्पन्न की। 49. पं. देवचन्द्र ने अपने कन्नड़ इतिहास 'राजावलिकये' ( 1805 1842 ई.) में चन्द्रसागर वर्णी के उक्त ' अकलंकचरिते' में संकलित अनुश्रुतियों के आधार पर अकलंक सम्बन्धी कथा कही है। विवेच्य भट्ट अकलकंदेव के सम्बन्ध में उपर्युक्त साहित्यिक उल्लेखों से निम्नलिखित तथ्य विदित होते हैं (क) अकलंक दिगम्बर और श्वेताम्बर उभय आम्नायों के विद्वानों के समानरूप से श्रद्धाभाजन रहे हैं। इनकी कृतियां विद्वानों के लिए प्रेरणास्त्रोत रहीं । फलस्वरूप उन पर टीकाएं, वृत्तियां व भाष्य रचे जाते रहे और उनकी कृतियों से उद्धरण दिये जाते रहे । (ख) सातवीं शती में ही इनकी कृति 'सिद्धिविनिश्चय' को 'प्रभावक शास्त्र' घोषित कर दिया गया था।
SR No.524767
Book TitleJain Vidya 20 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1999
Total Pages124
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy