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________________ जैनविद्या - 20-21 ___ अकलंक नाम के कुछ अन्य विद्वान्–श्रीमद्भट्टाकलंक देव स्वामी अपने समय के इतने बड़े दिग्गज प्रकांड पण्डित तथा विख्यात मनीषी थे कि उनकी यश:पताका दिग्दिगन्त तक प्रख्यातरूप से फहराती रही, फलतः उनके उत्तरवर्ती विद्वानों ने तथा उनके माता-पिता ने 'अकलंक' नाम को इतना अधिक पुनीत और सार्थक समझा और स्वयं को अकलंक नाम से अथवा माता-पिता ने अकलंक नाम-निक्षेप में बड़े गौरव और आनन्द की अनुभूति की होगी, अतः हम यहाँ ऐसे अकलंक नामधारी लगभग ग्यारह विद्वानों का संक्षिप्त-सा उल्लेख करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहे हैं (1) अकलंक चन्द्र - नंदीसंघ, सरस्वतीगच्छ, बलात्कारगण और कुन्दकुन्दान्वय की पट्टावली के 73 वें गुरु वर्धमान कीर्ति के पश्चात् और ललित कीर्ति के पूर्व इनका उल्लेख मिलता है। समय है 1199-1200 ई., ग्वालियर पट्टान्तर्गत। (2) अकलंकत्रैविद्य - मूलसंघ, देशीयगण, पुस्तकगच्छ, कोण्डकोण्डान्वय कोल्हापुरीय शाखा के विद्वान् थे। इनका समय विक्रम की 12वीं सदी है। (3) अकलंक पण्डित - इनका उल्लेख श्रवणगोलस्थ चन्द्रगिरि के शिलालेख सं. 169 में पाया जाता है जो सन् 1098 ई. में उत्कीर्णित हुआ था। (4) अकलंकदेव - इन्होंने द्रविड़ संघ नन्द्यान्वय के वादिराज मुनि के शिष्य महामण्डलाचार्य राजगुरु पुष्पसेन मुनि के साथ शक संवत् 1178 (1256 ई.) में हुम्च में समाधिमरण किया था। ये पुष्पसेन के सधर्मा तथा गुणसेन सैद्धान्तिक के गुरु थे। (5) अकलंक मुनिय - ये नंदीसंघ, बलात्कारगण के जयकीर्ति के शिष्य, चन्द्रप्रभ के सधर्मा तथा विजयकीर्ति, पाल्यकीर्ति, विमलकीर्ति, श्रीपालकीर्ति और आर्यिका चन्द्रमती के गुरु थे। संगीतपुर नरेश सालुवदेवराय इनका परम भक्त था। बंकपुर में इन्होंने नृप मादनएल्लप के मदोन्मत्त प्रधान गजेन्द्र को अपने तपोबल से शांत किया था। इनका स्वर्गवास शक सं. 1417 (1535 ई.) में हुआ था। (6) अकलंकदेव - ये मूलसंघ, देशीयगण, पुस्तकगच्छ, कुन्दकुन्दान्वय में श्रवणवेल्गोल मठ के चारूकीर्ति पण्डित की शिष्य परंपरा के थे तथा संगीतपुर (दक्षिणी कनारा जिला) के भट्टारक थे। ये कर्नाटक शब्दानुशासन के कर्ता भट्टाकलंक देव के गुरु और संभवतया अकलंक मुनिय के प्रशिष्य थे। इनका समय सन् 1550 से 1575 ई. के लगभग प्रतीत होता है। (7) अकलंकदेव ( भट्टाकलंकदेव) - ये मूलसंघ, देशीयगण के विद्वान् तथा सुधापुर के भट्टारक थे। विजयनरेश वेंकटपतिराय (1586-1615 ई.) के द्वारा समादृत तथा कर्नाटक शब्दानुशासन नामक प्रसिद्ध कनडी व्याकरण और मंजरी मकरंद शोभकृत संवत्सर के रचयिता थे। समय 1604 ई. के लगभग। __(8) अकलंक मुनिय - देशीयगण, पुस्तकगच्छ के कनकगिरि (करर्कल) के भट्टारक थे। शक सं. 1735 (विक्रम सं. 1870-सन् 1813 ई.) में इन्होंने समाधिमरण किया था।
SR No.524767
Book TitleJain Vidya 20 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1999
Total Pages124
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size9 MB
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