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________________ 102 जैनविद्या - 20-21 साक्षात्कार इन्द्रियार्थ सन्निकर्ष के प्रथम क्षण में तथा समाधि की अवस्था में होनेवाले निर्विकल्पक प्रत्यक्ष द्वारा होता है। यद्यपि सविकल्पक ज्ञान वस्तु को उसके अनेक धर्मों द्वारा और इसलिये एकानेकात्मक रूप में ही जानता है लेकिन बौद्ध और अद्वैत वेदान्त के अनुसार यह ज्ञान अनादिकालीन अज्ञानजनित है और इसलिये यह परमार्थतः सत्य न होकर मिथ्या है। __ अकलंकदेव विभिन्न दर्शनों की उपर्युक्त मान्यताओं को अस्वीकार करते हुए ज्ञेय पदार्थ के धर्मधात्मक या द्रव्यपर्यायात्मक स्वरूप का प्रतिपादन करते हैं। उनके अनुसार न केवल अनुमान और शब्द प्रमाण बल्कि प्रत्यक्ष भी सदैव सविकल्प ही होता है। प्रत्यक्ष को परिभाषित करते हुए वे कहते हैं कि प्रत्यक्ष विशद और साकार (सविकल्पक) ज्ञान है। इसका विषय द्रव्यपर्यायात्मक, सामान्य-विशेषात्मक वस्तु होती है।' आचार्य का "द्रव्यपर्यायात्मक अर्थ ज्ञान का विषय" से क्या अभिप्राय है यह समझने के लिये हम द्रव्य और पर्याय शब्दों के अर्थ पर विचार करें। 'द्रव्य' और 'पर्याय' शब्द के अर्थ जैन दर्शन के अनुसार जो भी सत् है वह एक-अनेकात्मक, भेद-अभेदात्मक, सामान्यविशेषात्मक, नित्य-अनित्यात्मक वस्तु है । प्रस्तुत सन्दर्भ में 'द्रव्य' शब्द एक वस्तु के एक, अभेद, सामान्य, नित्य आदि स्वरूप का पर्यायवाची है तथा पर्याय' शब्द का प्रयोग वस्तु के अनेकात्मक, भेदात्मक, विशेषात्मक, अनित्यात्मक आदि पक्षों के वाचक के रूप में किया जाता है । इस प्रकार सत्ता के द्रव्यपर्यायात्मक स्वरूप का अर्थ है उसका एक-अनेकात्मक, भेद-अभेदात्मक आदि स्वरूप से युक्त होना । यहाँ शंका की जा सकती है कि सत्ता को तो द्रव्यगुणपर्यायात्मक स्वीकार किया गया है फिर उसे द्रव्यपर्यायात्मक क्यों कहा जा रहा है? इसके उत्तर में अकलंकदेव कहते हैं - ___ द्रव्य सामान्य विशेष उभयात्मक है। यहाँ पर द्रव्य, सामान्य, उत्सर्ग, अन्वय, गुण ये एकार्थक शब्द हैं। विशेष, भेद, पर्याय ये सब 'पर्याय' शब्द के अर्थ हैं। ___ अथवा गुण ही पर्याय है। अर्थात् उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य ही पर्याय है। इस प्रकार पर्याय से भिन्न गुण नहीं है। इसलिये गुण ही पर्याय है।' अन्यत्र अकलंकदेव कहते हैं - जो अनुगताकार या एकल बुद्धि का आधार है वह द्रव्य तथा जो व्यावृताकार या भेद बुद्धि का आधार है वह पर्याय है।' सिद्धविनिश्चय के टीकाकार कहते हैं - 'पर्याय' शब्द का प्रयोग कभी धर्म, कभी अंश और कभी एकदेश के रूप में किया जाता है। इसके विपरीत 'द्रव्य' शब्द धर्मी, अंशी, समग्र का पर्यायवाची है। द्रव्य-पर्यायात्मक अर्थ ज्ञान का विषय ___ ज्ञान का विषय सदैव द्रव्यपर्यायात्मक, एकानेकात्मक, भेद-अभेदात्मक, सामान्यविशेषात्मक सत्ता होती है। हम अनेक सहवर्ती गुणों के ज्ञानपूर्वक एक गुणी को, अनेक क्रमवर्ती पर्यायों के ज्ञानपूर्वक एक पर्यायी या द्रव्य को तथा अनेक अवयवों के ज्ञानपूर्वक एक अवयवी
SR No.524767
Book TitleJain Vidya 20 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1999
Total Pages124
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size9 MB
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