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जैनविद्या 18
6.
रात्रि-भोजन-त्याग प्रतिमा - जो साधक चारों प्रकार का आहार एवं जल रात्रि में त्यागता है साथ ही मन, वचन, काय तथा कृत, कारित और अनुमोदना से मैथुन-दिवा का त्याग करता है। विवेच्य कृति में इस प्रतिमा काधारी दयालु श्रावक रात्रि में चारों प्रकार के भोजन का त्याग कर देता
8.
ब्रह्मचर्य प्रतिमा - इस प्रतिमा का धारी श्रावक मन, वचन, काय; कृत, कारित और अनुमोदनागुणित नौ प्रकार के ब्रह्मचर्य का त्याग करता है । विवेच्य कृति में उल्लिखित है कि जो श्रावक शारीरिक अशुचिता का अनुभवकर काम-सेवन का सर्वथा त्याग कर देता है वह इस प्रतिमा का धारी होता है। आरम्भ-त्याग-प्रतिमा - आरम्भ शब्द का अर्थ है प्राणियों को दुःख पहुँचानेवाली प्रवृत्ति । इस प्रतिमा का धारी श्रावक गृहकार्य में होनेवाली हिंसा का सर्वदा के लिए त्याग कर देता है। विवेच्यकृति में भी इस प्रतिमा का धारी जीव हिंसा के कारणाभूत नौकरी, खेती तथा व्यापार आदि
आरम्भों का त्याग कर देता है। परिग्रह-त्याग प्रतिमा - जो आवश्यक वस्त्रादि को रखकर शेष सभी परिग्रह त्यागता है वही परिग्रह-त्याग प्रतिमा को धारण कर सकता है । विवेच्य कृति में श्रावक द्वारा दश परिग्रहों अर्थात्, क्षेत्र, वास्तु, धन, धान्य, द्विपद, चतुष्पद, यान, शयन, आसन, कुप्य और भाण्ड में ममता छोड़कर सन्तोष-वृत्ति धारण करने का निर्देश दिया गया है। ऐसा वैराग्यमुखी श्रावक ही
परिग्रह-त्याग प्रतिमा धारण करता है। 10. अनुमति-त्याग प्रतिमा - आरम्भ, परिग्रह तथा लोकधर्मी कार्यों में कोई अनुमति अर्थात्
अनुमोदना नहीं करना अनुमति-त्याग प्रतिमाधारी श्रावक का लक्षण होता है । विवेच्य कृति में स्पष्ट किया है कि जिस सद्गृहस्थ की आरम्भ, परिग्रह तथा इस लोक सम्बन्धी कार्यों में अनुमति
नहीं है वह समान बुद्धिवाला सत्पुरुष निश्चय से अनुमति प्रतिमा का धारी मानने योग्य है। 11. उद्दिष्ट-त्याग प्रतिमा - जो साधक श्रावक मन, वचन, काय; कृत, कारित, अनुमोदन से नव
कोटि शुद्ध आहार को गृहस्थ के घर पर एकबार ग्रहण करता है वह उद्दिष्ट-त्याग प्रतिमाधारी श्रावक होता है।
इस प्रकार श्रावक - गृहस्थ को साधना-सम्पन्न करने के लिए इन प्रतिमा के धारण करने का संकल्प-अभ्यास आवश्यक है। वैयावृत्त्य
___ मुनि, उपाध्याय तथा आचार्य पर व्याधि, परीषह, मिथ्यात्व आदि का उपद्रव होने पर उसका प्रासुक औषधि, आहार-पान, आश्रय, चौकी, तख्ता और संथारा आदि धर्मोपकरणों से प्रतीकार करना तथा सम्यक्त्व मार्ग में दृढ़ करना, औषधि आदि के अभाव में अपने हाथ से खकार, नाक-मल आदि अभ्यन्तर मल को साफ करना और उनके अनुकूल वातावरण बना देना वस्तुत: वैयावृत्त्य है ।