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जैनविद्या 18
मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान, मिथ्याचरित्र - ये तीनों संसार-दु:ख के कारण हैं। ये कभी भी सुख के हेतु नहीं हो सकते हैं। . सम्यग्दर्शन का लक्षण
श्रद्धानां, परमार्थानामाप्तागम तपो-भृताम् ।
त्रिमूढा पोढमष्टांगं, सम्यगदर्शनमस्मयम् ॥4॥ - सच्चे आप्त, आगम एवं मुनि (देव, शास्त्र, गुरु) का तीन मूढ़तारहित, आठ अंगसहित, आठ मद-रहित जैसा का तैसा श्रद्धान सम्यग्दर्शन (सम्यक्त्व) कहलाता है। सत्यार्थ देव (आप्त) का लक्षण
आप्तेनोत्सन्नदोषेण, सर्वज्ञेनागमेशिना ।
भवितव्यं नियोगेन, नान्यथाह्याप्तता भवेत् ।।5॥ . - जो वीतराग (18 दोषरहित), सर्वज्ञ एवं हितोपदेशी हैं वे ही सच्चे देव हैं। किन्तु जो इन गुणों से रहित हैं वे आप्त नहीं हो सकते अर्थात् सच्चे देव नहीं हो सकते हैं। - 1. प्रथम परिच्छेद में सत्यार्थ, आप्त, आगम और तपोमृत के त्रिमूढ़तारहित तथा आठ मदहीन
और अष्ट अंगसहित श्रद्धान को सम्यग्दर्शन बतलाया है। आप्त, आगम, तपस्वी के लक्षण, लोक, देव, पाखंडी, मूढ़ताओं का स्वरूप, ज्ञानादि अष्ट कर्मों के नाम और नि:शंकादि अष्ट अंगों के महत्वपूर्ण लक्षण एवं इन अंगों के साधक प्रसिद्ध व्यक्तियों के नाम दिये हैं। धर्म का लक्षण, सम्यग्दर्शन, देव-शास्त्र-गुरु का लक्षण, मूढ़ता, मद के नाम एवं सम्यग्दर्शन की महिमा का विस्तार के साथ वर्णन किया है। सम्यग्दर्शन के लक्षण, विषय, गुण, दोष, निःश्रेयस तथा अभ्युदयिक फल का वर्णन किया है।
इनमें निम्नलिखित विशेषताएं दृष्टिगोचर होती हैं - (1) सम्यग्दर्शन युक्त चांडाल भी पूज्य है। (2) ज्ञान और चारित्र की अपेक्षा सम्यग्दर्शन मुख्य है। वह मोक्ष-मार्ग में खेवटिया के सदृश है,
उसके बिना ज्ञान-चारित्र की उत्पत्ति, स्थिति, वृद्धि और फलोदय उसी तरह नहीं हो पाते ___ जिस तरह बीज के अभाव में वृक्ष की उत्पत्ति आदि नहीं हो पाते। (3) निर्मोही सम्यग्दृष्टि गृहस्थ मोक्षमार्गी है, परन्तु मोही (मिथ्यादृष्टि) मुनि मोक्षमार्गी नहीं।
अतएव मोही मुनि से निर्मोही गृहस्थ श्रेष्ठ है। 2. द्वितीय परिच्छेद में सम्यग्ज्ञान का लक्षण देकर उसके विषयभूत प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग का सामान्य स्वरूप दिया है।
3. तृतीय परिच्छेद में सम्यग्चारित्र के धारण करने की पात्रता और आवश्यकता का वर्णन करते हुए उसे हिंसा, असत्य, चोरी, मैथुन और परिग्रहरूप पाप-प्रणालियों से विरतिरूप बतलाया है। सकल चारित्र मुनियों के होता है और विकल चारित्र परिग्रहसहित गृहस्थों के होता है। गृहस्थों के योग्य विकल