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________________ जैनविद्या 18 नयप्रमाणसम्पुष्ट सर्वबाधा विवर्जितं । सार्वमन्यैरजय्यंच तं वीरं प्रणिदध्महै ||२|| भक्ति भावनिरता मुनयोऽकलंक, विद्यादिनन्द जिनसेनसुवादिराजाः ॥ गायन्ति दिव्यवचनैः सुयशांसि यस्य, भूयाच्छियैस युगवीर समन्तभद्रः ॥३॥ देवागमहिन्दी, टीका ( पूरा स्तोत्र परिशिष्ट 'अ' पर देखें) दक्षिण के एक कवि नागराज (1253 शक. सं.) स्वामी समन्तभद्र की भारती से इतना अधिक प्रभावित हुए थे कि उन्होंने आठ श्लोकों का एक सशक्त स्तोत्र 'समन्तभद्र भारती स्तोत्र' शीर्षक से संस्कृत में रचा था ( यह परिशिष्ट 'ब' पर प्रकाशित है ) । स्वामी समन्तभद्र का स्तुतिगान साहित्यकारों, कवियों, आचार्यों या मुनियों तक ही सीमित नहीं रहा अपितु उनके अन्य प्रशंसक उनकी यशोगाथाएं शिलालेखों में भी उत्कीर्ण करा गये हैं जो अनन्तकाल तक चिरस्थायी रहेंगी उनमें से कुछ शिलालेखों का उल्लेख हम यहाँ करना चाहते हैं - श्रवणवेलगोल में सिद्धरवस्ती में दक्षिणी ओर पर एक स्तम्भ पर शक सं. 1355 तदनुसार 1433 ई. के उत्कीर्णित लेख में स्वामीजी को जिन शासन का प्रणेता लिखा है, यथा समन्तभद्रोऽजनि भद्रमूर्तिस्तत: प्रणेता जिनशासनस्य । यदीयवाग्वज्रकठोरपातश्चूर्णीचकार प्रतिवादिशैलान् ||१४|| 2 43 इसी वस्ती के उत्तरी ओर के स्तम्भ पर ई. सन् 1498 के प्रस्तर लेख में स्वामी जी के प्रति वंदना करते हुए लिखा है. - समन्तभद्रस्स चिरायजीयाद्वादीभवज्रांकुशसूक्तिजालः । यस्य प्रभावात्सकलावनीयं वन्ध्या स दूर्व्वादुकवार्तयोऽपि ॥ १७॥ स्यात्कार मुद्रित समस्त पदार्थ पूर्णम्, त्रैलोक्य हर्म्यमखिलं स खलु व्यनक्ति । दुर्वादुकोक्तितमसा पिहितान्तरालं, सामन्तभद्रवचनस्फुट रत्नदीप: ।। १८ ।। ३ श्रवणबेलगोल के चन्द्रगिरि पर्वत पर महानवमी मण्डप में शक सं. 1085 ई. सन् 1163 के प्रस्तर लेख में स्वामीजी के लिए लिखा है - एवं महाचार्य परम्परायां स्यात्कार मुद्रांकित तत्वदीपः । भद्रस्समन्ताद्गुणतो गणीशस्समन्तभद्रोऽजनिवादिसिंहः ||९|| इसी पर्वत की पार्श्वनाथवस्ति के एक स्तम्भ लेख पर 1128 ई., शक सं. 1050 में स्वामी समन्तभद्र के विषय में लिखा है 15 - वन्द्योभस्मक भस्मसात्कृति पटुः पद्मावती देवता, दत्तोदात्त पदस्व मंत्र वचन व्याहूत चन्द्रप्रभः । आचार्यस्स समन्तभद्रगणभृद्येनेह काले कलौ, जैनं वर्त्म समन्तभद्रमभवद्भद्रं समन्तान्मुहुः ||६||
SR No.524765
Book TitleJain Vidya 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1996
Total Pages118
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
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