SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 86 1 [ जनविद्या-13 16 मई विप्पहु सूरहु वंदणेण, केसुल्लउ वरि संभवहुएण । जिरणवरहु चलण अणुरत्तएरण, णिग्गंथहं रिसिइहभत्तएण । कुतित्थ कुधम्म विरत्तएण, रणामुज्जलु पयडु वहंतएण । हरिवंसु सयलु सुालय पएहि, मई विरयउ सुटु सुहावएहि । सिरि अंबसेरण गुरवेण जेम, वक्खाणि किउ अणकमेण तेरण । सज्जण मुरणेवि बहुगुण भरणंति, दुज्जरण पच्चेलिउ दोसु लिति । इह दुट्ठहं खलह सहाउ कोवि, लाएवि दोसु णिद्दोसहो वि । जे खाहि पियहि घणु विवंति, अप्पउ सम्मत्ता खल भरणंति । जे विढविवि संचहि अत्थ के वि, तित्थाउर वुच्चहि खलहि ते वि। वक्खाणहि जाणंत ते पहंति, वायंतरि हया ते भरगति । जे विविह सत्थण मुरणंति के वि, पसुमुक्खब खल पभणंति ते वि । सहहि महत्थ जे खंति परा, ते वुहि खर्लाह असक्क गरा । जे परिहउ रणासहि पउरुसेरण, कर चंडा वुच्चहि खलहि तेरण । जे माय विसल्लहि रिणय पउ वि, तउ दुक्करु छुट्टइ अण्णु को वि । घत्ता-जो उवहसिउ ण तेरण हि वि अंसकरेहि वि सो हउं भवरिण रण देक्खमि । पाउ खलह तहु देविणु रिसिय णवेप्पिणु जरणणि सुरणहु कह अक्खमि ॥6॥ 1.7 प्रत्थ पुवु तुम्हहि भाविज्जहु, भवियहं मणवयकाय विसुद्धहं, तउ सुझाउ भवह बहु सोहणु, मछररहिउ सुहिं जो भावें, जिणसंठाण ट्ठियउ तिहलोयहं पवर जेम हरिवंसु पइट्ठउ, जुज्झ तह या णिव्वाण गमरण पुणु, गंथु अपुटव कहमि णिसुरिणज्जहु । हियकरु सुद्ध जिरणागम लुद्धहं । सो अंधारयण्णाण परणासणु । पढइ पढावइ मुच्चइ पावें । वंसुप्पत्ति जेम रणरणाहउ । तहय जेम वसुएवं सिट्ठउ । अक्खमि भव्व सुणहु धरि रिणय मणु।
SR No.524761
Book TitleJain Vidya 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1993
Total Pages102
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy