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________________ 46 1 । जैन विद्या-13 ज्ञान विना प्रवृत्तिर्न हिते ज्ञान विना नास्त्यहितानि वृत्तिस्ततः प्रवृत्तिन हिते जनानाम् । ततो न पूर्वाजितकर्मनाशस्ततो न सौख्यं लभतेभ्यभीष्टम् ।1981 शक्यो वशीकर्तुं मिभोप्रतिमत्तः सिंहः फणीन्द्रः कुपितो नरेन्द्रः । . झानेन होनो न पुनः कथंचिदित्यस्य दूरेण भवन्ति सन्तः ।2061 प्रास्ता महाबोधबलेन साध्यो मोक्षो विबाधामलसौख्ययुक्तः । धर्मार्थकामा अपि नो भवन्ति ज्ञान विना तेन तदचनीयम् ।1911 - सुभाषितरत्नसंदोह -- ज्ञान के बिना मनुष्य की अहितरूप पाप-क्रियाओं से निवृत्ति नहीं होती और आत्महित कार्यों में प्रवृत्ति नहीं होती। हित-कार्य में प्रवृत्ति न होने से पूर्वसंचित कर्मों का नाश भी नहीं हो सकती । संसार दुःख का नाश हुए बिना सब जीवों का अन्तिम अभीष्ट-शाश्वत् सुख भी उनको प्राप्त नहीं हो सकता 11981 -मदोन्मत्त हाथी को अंकुश की सहायता से वश में ला सकते हैं, कुपित सिंह, सर्प या राजा को भी किसी प्रकार शान्त कर सकते हैं। परन्तु ज्ञान-विवेक से हीन पुरुष को सुमार्ग पर लाना कठिन है। इसलिए सन्त ज्ञान से कभी दूर नहीं रहते, ज्ञान के उपार्जन से कभी अपना मुंह नहीं मोड़ते ।2061 -महाबोध (केवलज्ञान) के बल से ही प्राप्त होनेवाले बाधारहित व कर्ममलरहित शाश्वतसुख के भण्डार मोक्ष की बात जाने दो, ज्ञान के बिना तो धर्म, अर्थ और काम पुरुषार्थ भी नहीं हो सकते । अतः ज्ञान पूज्य है ।191। -अनु. पं. बालचन्द्र सिद्धांतशास्त्री
SR No.524761
Book TitleJain Vidya 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1993
Total Pages102
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
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