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[ जैनविद्या-13
य: साधूदितमन्त्रगोचरमतिक्रान्तो द्विजिह्वाननः । कुद्धो रक्तविलोचनो सिततमो मुंचत्यवाच्यं विषम् । रौद्रो दृष्टिविषो विभीषितजनो रन्ध्रावलोकोद्यतः, कस्तं दुर्जनपन्नगं कुटिलगं शक्नोति का वशं ॥
इस प्रकार से सुभाषित-रत्न-संदोह के सभी प्रकरण उत्तमोत्तम सुभाषितों से भरे हुए हैं । शौचनिरूपण के एक काव्य में प्राचार्यश्री कहते हैं जो स्नान से पवित्रता मानते हैं वे आकाश में शतदल कमल उत्पन्न होना मानते हैं। मलिन शरीर की शुद्धि जल से होना असम्भव है
मेरूपमान मधुपव्रज सेवितान्तं, चेज्जायते वियति कंजमनन्त पत्रं । कायस्य जातु जलतो मलपूरितस्य शुद्धिस्तदा भवति निन्द्य मलोद्भवस्य ।
इस प्रकार सभी प्रकरण उत्तमोत्तम छन्दों के द्वारा सुमाषितों से परिपूर्ण हैं । .
4. पंचसंग्रह - प्राचार्य अमितगति द्वारा रचित 'पंचसंग्रह' प्राकृत पंचसंग्रह की संस्कृत छाया समझा जा सकता है किन्तु अनेक स्थलों में वैषम्य होने से उसे एक स्वतन्त्र रचना कहना असंगत नहीं है। जैसे प्राकृत गाथा का विषय दो से अधिक संस्कृत पद्यों में समाहित करना संस्कृत पंचसंग्रह की विशेषता है। संस्कृत पंचसंग्रह में 1375 छन्द हैं। जिस प्रकार प्राकृत पंचसंग्रह में कई स्थानों पर गद्य भी लिखे गये हैं उसी प्रकार संस्कृत पंचसंग्रह में भी कई पद्यों के साथ गद्य भी लिखा गया है किन्तु रूपान्तर होने पर भी कई दृष्टियों से वैशिष्टय है। प्राचार्य अमितगति की रचना सरल एवं मधुर है। कई स्थानों पर अन्य ग्रन्थों का सहारा भी लिया गया है, जैसे तत्त्वार्थवार्तिक ।
प्रस्तुत पंचसंग्रह में करणानुयोग विषयक पांच विषयों का संग्रह किया गया है यथा1. जीवसमास, 2. प्रकृतिस्तव, 3. कर्मबन्धस्तव, 4. शतक और 5. सप्तति ।
1. जीवसमास प्ररूपणा में गोम्मटसार एवं द्रव्यसंग्रह के अनुसार 14 जीवसमास गिनागे
गये हैं
एकेन्द्रियेषु चत्वारः समासा विकलेषु षट् । पंचन्द्रियेषु चत्वारो भवन्त्येते चतुर्दशः ॥