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________________ 2 ] [ जैनविद्या-13 रचना आपके बहुश्रुत होने के कारण ही आपने अनेक ग्रन्थों की रचना की। सुभाषितरत्न-संदोह, धर्मपरीक्षा, पंचसंग्रह (संस्कृत), अमितगति श्रावकाचार, भावनाद्वात्रिंशतिका, सामायिक पाठ, आराधना (भगवती आराधना संस्कृत श्लोक) तत्वभावना, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति, अढाई द्वीप प्रज्ञप्ति, व्याख्याप्रज्ञप्ति इत्यादि आपकी कृतियां हैं। उक्त कृतियों में जो विशेषरूप से प्रसिद्ध हैं तथा उपलब्ध हैं उनका सक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार दिया गया है। कतिपय रचनाओं का संक्षिप्त परिचय 1. अमितगति श्रावकाचार-इस श्रावकाचार का दूसरा नाम उपासकाचार भी है। वर्तमान में जितने श्रावकाचार उपलब्ध हैं उनमें यह श्रावकाचार विशद, सुगम और विस्तृत है। इसमें 1352 पद्य और 15 अध्याय हैं। ग्रन्थ के अन्त में गुरुपरम्परा भी दी गयी है किन्तु रचनाकाल नहीं दिया गया है। रचना में श्रावक के आचार-सम्बन्धी सभी विषयों का खुलासा वर्णन किया गया है। जैसे- सम्यग्दर्शन, इसके विपरीत मिथ्यादर्शन, सप्ततत्त्व, अष्टमूलगुण, बारहव्रत और उनके पांच-पांच अतिचार, षट्झावश्यक-दान, पूजा, उपवास आदि का सुविस्तृत वर्णन के अतिरिक्त ध्यान, ध्याता, ध्येय और ध्यान के फल का विवेचन भी अत्यन्त सुन्दर ढंग से किया गया है जो 114 पद्यों में समाहित है । सर्वप्रथम निन्दा करनेवालों तथा दोष लगानेवालों की परवाह न कर अपनी रचना के कार्य को करते रहने की प्रतिज्ञा करते हैं क्षद्रस्वभावाः कृतिमस्तदोषां निसर्गतो सद्यपि दूषयते । तथापि कुर्वति महानुभावस्त्याज्या न युकामयतो हि शाटी ॥ नीच पुरुष निर्दोष कार्यों में भी दोषारोपण करते हैं क्योंकि नीचों की प्रकृति छिद्रान्वेषी होती है किन्तु सत्पुरुष अपने कार्य को नहीं छोड़ते क्योंकि यूकाओं के भय से साड़ी नहीं त्यागी जाती । अर्थात् क्षुद्रपुरुषों के डर से सत्पुरुष अपना कार्य नहीं त्यागते । मनुष्य भव की प्रधानता में प्राचार्य कहते हैं नरेषु चक्री त्रिदशेषु वनी मृगेषु सिंहः प्रशमो व्रतेषु । मतो महीभृत्सु सुवर्णशैलो भवेषु मानुषभवः प्रधानम् ।। भाव यह है कि जैसे-मनुष्यों में चक्रवर्ती, देवों में इन्द्र, मृगों में सिंह, व्रतों मैं प्रशमभाव और पर्वतों में सुमेरुपर्वत प्रधान है, वैसे ही भवों में मनुष्य भव प्रधान अर्थात् उत्कृष्ट है।
SR No.524761
Book TitleJain Vidya 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1993
Total Pages102
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
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