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________________ जैनविद्या-13 ] अप्रेल-1993 [ 1 बहुश्रुत विद्वान् आचार्य अमितगति -डॉ. गुलाबचन्द जैन व्यक्तित्व ___ जिनका नाम अमित (अप्रमाण) गति (ज्ञान) अर्थात् अप्रमाण ज्ञान का द्योतक है ऐसे बहुश्रुत विद्वान् के विषय में कुछ कहना सूर्य को दीपक दिखाने जैसा है। कुछ पृष्ठों में उनके व्यक्तित्व को समेट लेना मात्र अपने मन को सन्तोष देना है। जिस समय वे इस धराधाम पर अवतरित हुए उस समय मालवा की राजधानी उज्जयनी में राजा मुंज राज करते थे। इनकी रचनाओं में उद्धृत कारिकाओं के आधार पर पण्डित श्री विश्वेश्वरनाथ रेउ ने इनको वाक्पति-राजा मुञ्ज की सभा के रत्न के रूप में स्वीकार किया है। आप प्रथित-यश सारस्वताचार्य थे। आपका विविध विषयों पर पूर्ण अधिकार था । इसी कारण आपने काव्य, न्याय, व्याकरण, माचार प्रभृति विषयों पर काफी ग्रन्थ लिखे हैं । समय आपकी रचनाओं के आधार पर विद्वानों ने प्रापको 11वीं शती का विद्वान माना है । आपके द्वारा रचित सुभाषित-रत्न-संदोह के आधार पर, जो कि राजा मुज के राज्यकाल 993 ई. में रचा गया था और धर्म-परीक्षा 1013 ई. में रची गयी थी, संस्कृत पंचसंग्रह 1016 ई. में रचा गया था इसी कारण आपका समय 11वीं शताब्दी माना गया है। गुरुपरम्परा प्राचार्य अमितगति माथुर संघ के प्राचार्य थे । इनकी गुरुपरम्परा में देवसेन के शिष्य अमितगति प्रथम और अमितगति प्रथम के शिष्य माधबसेम तथा उनके शिष्य अमितगति द्वितीय थे । इनके शिष्य नेमिषेण थे ।
SR No.524761
Book TitleJain Vidya 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1993
Total Pages102
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
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