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________________ जनविद्या-12 जान लो कि न तो उसके वर्ण है, न गंध है, न रस है, न उसके शब्द है, न स्पर्श है, न क्रोध है, न मद है, न स्थान है, न ध्यान है, न माया है, न मान है, न जन्म है, न मरण है, न मोह है, न लोभ है ।।6।। और वह पुण्य-पाप और हर्ष-विषाद से रहित है, न उसके धारणा है और न ध्येय है, वह तन्त्र, मन्त्र, मंडल, मुद्रा से रहित है । उसके एक भी दोष नहीं है ।।7।। वह परम निरंजन, कालिमा (कर्म) रहित, शुद्धस्वरूपी, सचेतन; सुखस्वरूपी है, कर्तृत्व, कर्म तथा क्रिया से रहित, पूर्ण दर्शन, ज्ञान और चारित्र का धारी है ।।8।। विशेष-जैन परम्परा में केवल शब्द का प्रयोग जब दर्शन, ज्ञान और चारित्र के साथ होता है तब उसका अर्थ सिर्फ न होकर पूर्ण होता है । जिसके बल-वीर्य का अन्त नहीं है, जो सूक्ष्म है, नेत्रों से दिखाई नहीं देता है, ज्ञानी है, जिसकी अवगाहना का अन्त नहीं है, न वे परस्पर में लघु अथवा गुरु हैं, न बाधित हैं ।।9।।। विशेष-संसारी जीव आठ प्रकार के कर्मों से बंधा हुआ है। उनसे जब वह मुक्त होता है तो उनके विरोधी 1. अनन्तदर्शन, 2. अनन्तज्ञान, 3. अनन्तवीर्य, 4. अव्याबाधत्व, 5. अनन्तसुख, 6. सूक्ष्मत्व, 7. अवगाहनत्व और 8. अगुरुलघुत्व ये आठ गुण प्रात्मा में प्रकट हो जाते हैं। लोक के शिखर पर तीन वातवलय के मध्य यह मुक्त प्रात्मा अनन्त काल तक सुखपूर्वक निवास करता है। कर्मबद्ध संसारी जीव घी से पूरे भरे हुए घड़े के समान सम्पूर्ण लोक में समाये हुए हैं।।10।। यह जीव की दो श्रेणियों का वर्णन हुआ। अब जड़ स्वभावी अजीव का वर्णन करते हैं। परमाणु अविभागी और सूक्ष्म होते हैं । अपने से दो गुण अधिक वाले मिलते हैं । उनको अनन्त और शुद्ध जानो ।।11।। विशेष-जैन दर्शन में अणु अथवा परमाणु एक ही द्रव्य के नाम हैं। जिसका आदि मध्य तथा अन्त नहीं हो अर्थात् जिसका दूसरा भाग नहीं हो सकता वह अणु कहलाता है । ये स्निग्धत्व और रूक्षत्व गुणों के कारण दो अधिक गुणवाले स्कंध के साथ ही बंधते हैं अर्थात् एक गुणवाला अणु तीन गुण वाले स्कंध के साथ ही मिलता है, दो गुणवाला स्कंध चार गुणवाले तथा तीन गुणवाला पाँच गुणवाले के साथ ही मिलते हैं, कम या अधिक गुणवाले के साथ नहीं। दो या इससे अधिक मिले हुए अणु स्कंध कहलाते हैं ।
SR No.524760
Book TitleJain Vidya 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size10 MB
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