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जैन विद्या-12
ना तिसु वंण्णु12 गंधु रसु जाणहु
ना तिसु हो सद्दु न फासु न कोहमयो । ना तिसु ठाणु ण14 झाणु ण5 मायामाणु
न हो जम्म ण मरण न मोह लम्रो ॥6॥
पर सो पुण्णपाप थे16 रहियउ हरिसु विसाउ
ण धारणु धेउ तसु । अरु सो तंतु मंत थे19 रहियउ मंडल मुद्ध
न एकइ दोसु जसो ॥7॥ णिरंजणु20 अंजणरहियउ
सुद्धसरूउ सचेयण सुखसरु । काया कार कया से रहियउ
केवल हो सणणाणचरित्तधर ॥8॥
परम
जसुरी बल वीरिय22 अंतु न होई23
सूक्षम हो नयणि न दोसइ णाणवहो । अवगाहनि अंतु न होई ल्हउडउ हो वडउ न वधा स्वपरहु ॥9॥
जसु24
लोक सिखरि तिहवात्तवलेमहि
निवसइ हो काल25 अनंत सुखसरु । कर्मजडित संसारीजीवनु
भुवणु सवायो घृत घट पूरि मरु ॥10॥ दुहु पयड़ी28 यहु जीउ पयासित
इबही अजीउ सुभाइ जडत्तणु । प्रविमागी परिमाणू सूममु
- दुगुणादि मिलहि अणंती28 सुद्ध माण2 ॥11॥
___12. वनु (ख)। 13. कोहमउ (ख)। 14. न (ख)। 15. न (ख)। 16. ते (ख)। 17. धरेणु (ख)। 18. 'अरु सो तंतु मंत ते रहियउ हरिसु विसाउ न धारणघेउ तसु' ये पंक्तियां (ख) में पुनः लिखी गई हैं। 19. ते (ख)। 20. णिरंजण (ख)। 21. जिसु (ख) । 22. वीर्य (ख) । 23. होइ (ख)। 24. जिसु (ख) । 25. कालु (ख)। 26. पयडि (ख)। 27. जडत गुणु (ख)। 28. अणंत (ख)। 29. भणु (ख)।