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________________ 86 जैन विद्या-12 ना तिसु वंण्णु12 गंधु रसु जाणहु ना तिसु हो सद्दु न फासु न कोहमयो । ना तिसु ठाणु ण14 झाणु ण5 मायामाणु न हो जम्म ण मरण न मोह लम्रो ॥6॥ पर सो पुण्णपाप थे16 रहियउ हरिसु विसाउ ण धारणु धेउ तसु । अरु सो तंतु मंत थे19 रहियउ मंडल मुद्ध न एकइ दोसु जसो ॥7॥ णिरंजणु20 अंजणरहियउ सुद्धसरूउ सचेयण सुखसरु । काया कार कया से रहियउ केवल हो सणणाणचरित्तधर ॥8॥ परम जसुरी बल वीरिय22 अंतु न होई23 सूक्षम हो नयणि न दोसइ णाणवहो । अवगाहनि अंतु न होई ल्हउडउ हो वडउ न वधा स्वपरहु ॥9॥ जसु24 लोक सिखरि तिहवात्तवलेमहि निवसइ हो काल25 अनंत सुखसरु । कर्मजडित संसारीजीवनु भुवणु सवायो घृत घट पूरि मरु ॥10॥ दुहु पयड़ी28 यहु जीउ पयासित इबही अजीउ सुभाइ जडत्तणु । प्रविमागी परिमाणू सूममु - दुगुणादि मिलहि अणंती28 सुद्ध माण2 ॥11॥ ___12. वनु (ख)। 13. कोहमउ (ख)। 14. न (ख)। 15. न (ख)। 16. ते (ख)। 17. धरेणु (ख)। 18. 'अरु सो तंतु मंत ते रहियउ हरिसु विसाउ न धारणघेउ तसु' ये पंक्तियां (ख) में पुनः लिखी गई हैं। 19. ते (ख)। 20. णिरंजण (ख)। 21. जिसु (ख) । 22. वीर्य (ख) । 23. होइ (ख)। 24. जिसु (ख) । 25. कालु (ख)। 26. पयडि (ख)। 27. जडत गुणु (ख)। 28. अणंत (ख)। 29. भणु (ख)।
SR No.524760
Book TitleJain Vidya 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size10 MB
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