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________________ 88 जैनविद्या-12 धम्म सकति प्रहम्मु कालु नहु वहुकउ सुद्ध सहाउ सरूउ स्वभावगुणु । स्वभाइ वीसगुणनिवसहि विगति विभाइ गिलइ सुयसुद्धतणु ॥12॥ रात्तउ82 पीलउ कालउ हरियउ धवलउ हो गंधु सुगंधु विभाव गुणु । कडुवो मीठउ तीक्षणु खारउ प्रामलु हो परवाणू परजाउ भणु ॥13॥ तातउ4 सोलउ85 हलुवो36 भारि-37_ करडउ हो कुवलउ38 रूक्खउ चीकणउ । चारि पयारि39 जु वाजे वाजहि भासये40 चेयण दोस41 भणु ॥14॥ जो उजोउ42 अधेरउ दोसइ या सुस छाहा छाही रूपकरु43 वणासपती भुइ पाणी धान्तु स वाई वाडि जडत्तणु ॥15॥ सवइ किस ही कमिण चेयणु होई जइ जिय मिलि करिवइ णिवइ45 धणु । चेयणु सो न प्रचेयणु होइ वहुविह पुग्गलु बंधइ लेय46 तणु ॥16॥ ___30. सुधु (ख)। 31. विगत (ख)। 32. रातउ (ख)। 33. (ख) में नहीं है । 34. रातउ (ख)। 35. पीलउ (ख)। 36. हलुउ (ख)। 37. भरिउ. (ख)। 38. कूवलहु (ख)। 39 पयार (ख)। 40. भासय (ख)। 41. देस (ख)। 42. उधेउ (ख)। 43. मसुछाहछाहडी तूपकरु (ख)। 44. कमिन (ख)। 45. निवड (ख)। 46. लोय (ख) ।
SR No.524760
Book TitleJain Vidya 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size10 MB
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