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________________ जैनविद्या-12 79 समन्तभद्र और पूज्यपाद के मध्य तथा पूज्यपाद और अकलंक के मध्य काफी समय का अन्तराल रहा है, क्योंकि अनेकों जैन गुरु और विद्वानों का इन अन्तरालों में होना पाया जाता है। _ 'जनेन्द्र' में पूज्यपाद ने अनेक पूर्ववर्ती जैन विद्वानों यथा-भूतबलि, यशोधर, प्रभाचन्द्र, सिद्धसेन, श्रीदत्त और समन्तभद्र का उल्लेख किया है। ये सभी ऐतिहासिक व्यक्ति थे और इनमें से कोई भी 450 ईस्वी सन् के उपरान्त नहीं रहा । जैनेतर विद्वानों में, उन्होंने बौद्ध विद्वान् दिङ नाग (ईस्वी सन् 345-425) के कतिपय पदों तथा 'सांख्यकारिका' के कर्ता ईश्वरकृष्ण वार्षगण्य (विक्रम संवत् 507 अर्थात् ईस्वी सन् 450) का उल्लेख किया है। इस प्रकार देवनन्दि पूज्यपाद के समय की ऊपरी सीमा 450 ईस्वी सन् के पूर्व नहीं ले जायी जा सकती। वृहस्पति संवत्सर, जिसमें गुप्तों और कदम्बों के शक संवत् 379 से 450 (ईस्वी सन् 457-528) के दानपत्र मिलते हैं, का सर्वप्रथम उल्लेख 'जैनेन्द्र' में हुआ है । वामन और जयादित्य (मृत्यु 660 ईस्वी) ने अपनी 'काशिकावृत्ति' में 'जनेन्द्र' का उल्लेख किया है । सिद्धसेन दिवाकर, जो अकलंक (लगभग 625-675 ईस्वी) से पहले हुए हैं, ने अपने 'सन्मति' में पूज्यपाद का परोक्ष उल्लेख किया है । भद्रबाहु नियुक्तिकार (लगभग 550 ईस्वी) उनके उपरान्त जीवित रहे प्रतीत होते हैं। गुरुनन्दि, जो पूज्यपाद के प्रशिष्य थे और कदाचित् मूल 'जैनेन्द्र-प्रक्रिया' के लेखक थे, अकलंक के पूर्व हुए थे। देवसेन के 'दर्शनसार' (933 ईस्वी) के अनुसार पूज्यपाद के शिष्य वज्रनन्दि ने विक्रम संवत् 526 (अर्थात् 469 ईस्वी) में दक्षिण में मदुरा में द्रविडसंघ की स्थापना की थी किन्तु पट्टावलियों में पूज्यपाद और वज्रनन्दि के मध्य 58 वर्ष का अन्तराल दिखाया गया है और इन दोनों के बीच में दो और गुरु हुए बताये गये हैं। उनमें पूज्यपाद का प्राचार्य काल 50 वर्ष और वज्रनन्दि का प्राचार्य काल 22 वर्ष बताया गया है । इस हिसाब से पूज्यपाद का समय चौथी शती ईस्वी के उत्तरार्द्ध में बैठता है, किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि देवसेन से कुछ भूल हुई है। इसमें सन्देह नहीं कि द्रविड़ संघ का संगठन और उसकी स्थापना पाण्ड्य देश में मदुरा में वज्रनन्दि और उनके सहयोगियों द्वारा की गई थी। तिथि के अंक अर्थात् 526 भी लगभग सही हैं, किन्तु देवसेन द्वारा यहाँ विक्रम संवत् का प्रयोग गलत हुआ है । यह शक संवत् प्रतीत होता है जिसके अनुसार द्रविड संघ स्थापना की तिथि शक 526 (अर्थात् 604 ईस्वी) बैठती है। यह ध्यातव्य है कि उस काल में दक्षिण भारत में शक संवत् का और उत्तर भारत में विक्रम संवत् का प्रचलन था । देवसेन स्वयं उत्तर भारतीय थे। अतः स्वभावतः उन्होंने जो तिथियाँ दी वे सब विक्रम संवत् में उल्लिखित की किन्तु ऐसा करते समय लगता है कि वे शक संवत् की तिथियों को विक्रम संवत् में परिवर्तित करना भूल गए जिसकी पुष्टि उनके द्वारा दी गई कुछ अन्य तिथियों के परीक्षण से भी हुई। इस प्रकार आचार्य वज्रनन्दि द्वारा द्रविड़ संघ की स्थापना
SR No.524760
Book TitleJain Vidya 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size10 MB
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