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जैनविद्या-12
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संक्षेप में कहा जा सकता है कि इष्टोपदेश अर्थालंकार के सौन्दर्य से मण्डित है। ये अलंकार कहीं भी रसरंग के कारण नहीं हैं अपितु वर्ण्यविषय के अनुरूप हैं। वस्तु स्वरूप के निदर्शन एवं भावों की सशक्त तथा हृदयस्पर्शी अभिव्यंजना में अलंकारों का समीचीन प्रयोग हुआ है।
श्री जी. सी. जैन स्वतंत्र,
मीलरोड़, गंजबासौदा (विदिशा) म. प्र. 464221
1. रीति विज्ञान : डॉ. विद्यानिवास मिश्र 2. रीति विज्ञान : डॉ विद्यानिवास मिश्र 3. वाच्यालङ कारवर्गोऽयं व्यङ ग्याज्ञानुगमे सति । . प्रायेणव परां छायां विभ्रल्लक्ष्ये निरीक्ष्यते ।। ध्वन्यालोक, 3/36