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________________ जैनविद्या-12 मोह में भ्रमित होकर मैने विश्व के सारे पौद्गलिक भोगोपभोग पदार्थ भोग लिये हैं पर तृप्ति नहीं हुई अतः अब उन उच्छिष्ट पदार्थों को पाने की मेरी कोई चाह नहीं है ।14 कर्म और जीव के सम्बन्ध में सुस्पष्ट है कि कर्म-कर्म का हित चाहते हैं और जीवजीव का, इसलिए मुझे अपनी शक्ति पहिचान कर अपना हित सोचना चाहिए15 दूसरों के उपकार के पहिले अपने उपकार के बारे में विचारना चाहिए अतः शरीरादि परपदार्थों को उपकृत करना भूलकर अपने आत्महित का साधन करना चाहिए। यह स्वोपकार ही साध्य है । अध्यात्म में स्वार्थी होना बड़ा गुणकारी है, इससे ही साधक सफल होता है। जो जितना स्वार्थी होगा वह उतना ही आत्मानुभूति में दृढ़ होगा। स्वार्थी का अर्थ यहां प्रात्मानुभूति के पुरुषार्थ में दत्तचित्त होना है। प्रात्मानुभूति को सफलता का द्योतक चिह्न बताते हुए इष्टोपदेश में लिखा है यथा यथा समायाति संवितौ तत्त्वमुत्तमम् । तथा तथा न रोचन्ते विषया: सुलमा अपि । यथा यथा न रोचन्ते विषयाः सुलमा अपि । तथा तथा समायाति संवितौ ' तत्त्वमुक्तमम् ॥ 37, 38 ॥ अर्थात् जैसे-जैसे अनुभूति में उत्तमतत्त्व अर्थात् अपना सहज परमात्वस्वरूप प्रात्मा आता है वैसे-वैसे सुलभ विषय भी रुचिकर नहीं लगते तथा जैसे-जैसे सुलभ विषयों की रुचि नहीं रहती वैसे-वैसे उत्तम तत्त्व अनुभूति में आने लगता है । अतः चित्त के क्षोभ को मिटाकर तत्त्वनिष्ठ योगी बन अर्थात् भोगरहित मन बनाकर अपने प्रात्मतत्त्व को जानने का (संवेदन करने का) ही अभ्यास हमें करना चाहिए । 0 णमोकारनिलय 5/47-मालवीय नगर जयपुर-302 017 1. जीवोऽन्यः पुद्गलश्चान्य इत्यसौ तत्त्वसंग्रहः । यदन्यदुच्यते किञ्चित्सोऽस्तुतस्यैव विस्तरः ।। - इष्टो. श्लोक 50 2. यस्य स्वयं स्वभावाप्तिरमावे कृत्स्नकर्मणः । तस्मै संज्ञानरूपाय नमोऽस्तु परमात्मने ।। - इष्टो. श्लोक 1 3. हृषीकजमनातकं दीर्घकालोपलालितम् । ____ नाके नाकौकसां सौख्यं नाके नाकौकसामिव ।। - इष्टो श्लोक 5 4. वासनामात्रामेवंतत् सुखं दुःखं च देहिनां । तथा ह्य द्ध जयंत्येते भोगा रोगा इवाऽऽपदि ।। - इष्टो. श्लोक 6 5. प्रारंभे तापकान्प्राप्तावतृप्तिप्रतिपादकान् । - इष्टो. श्लोक 17
SR No.524760
Book TitleJain Vidya 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size10 MB
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