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इष्टोपदेश : दर्शन और नीति का
अपूर्व संगम -डॉ. श्रीरंजन सूरिदेव
अपने पुण्याविर्भाव से कर्नाटक राज्य के कोलंगल नगर को इतिहासप्रतिष्ठ करनेवाले प्राचार्य देवनन्दी (ईसवी छठी शती) अपने पूज्यातिशय शलाकापुरुषोपम व्यक्तित्व तथा विलक्षण वैदुष्य के कारण पूज्यपादस्वामी के नाम से जन-समादृत हुए थे। अपने अतल-स्पर्श ज्ञान-गाम्भीर्य की अपूर्वता से वह बहुश्रुत की परिधि को पारकर सर्वश्रुत हो गये थे। वे व्याकरण, दर्शन, तन्त्र, योग, नीति, भक्ति, आयुर्वेद आदि अनेक विषयों के एक समान प्राख्याता थे । इस दृष्टि से उन्हें योग (मनः शुद्धि), व्याकरण (भाषा-शुद्धि) और आयुर्वेद (शरीर-शुद्धि) के समानान्तर प्रवक्ता महर्षि पतंजलि का प्रतिरूप कहा जाय तो कोई अत्युक्ति नहीं।
__'आदिपुराण' के रचयिता प्राचार्य जिनसेन द्वितीय (ईसवी 8 वीं. 9 वी शती) ने प्राचार्य देवनन्दी को 'तीर्थकृत्' की संज्ञा दी है:
कवीनां तीर्थकृदेवः किंतरा तत्र वर्ण्यते । विदुषां वाङ्मलध्वंसि तीर्थ यस्य वचोमयम् ॥
(प्रादिपुराणः 1/52) 'ज्ञानार्णव' के रचयिता प्राचार्य शुभचन्द्र (ई. 10-11 वीं शती) ने भी पतंजलिकल्प प्राचार्य देवनन्दी को काय-वाक्-चित्त के मल को दूर करनेवाले के रूप में प्रतिष्ठा देते हुए उनकी वन्दना की है