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________________ 46 जैनविद्या-12 में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान बनाए रहा । साथ ही उसने न केवल पाणिनि-व्याकरण को परिवर्तित-परिवर्धित करके और सुसंस्कृत बनाया अपितु संस्कृत व्याकरण शास्त्र की परम्परा को अद्भुत अवदान प्रदान किया। अनेकान्त शोधपीठ (बाहुबली-उज्जन) 15, एम. आई. जी. मुनिनगर उज्जैन (म.प्र.) 456010 1. जैन साहित्य का वृहद् इतिहास, भाग-5, पृ. 6 2. डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री, “जैनविद्या का सांस्कृतिक अवदान" पृ. 42-43 . 3. डॉ. गोकुलचन्द्र जैन, “संस्कृत प्राकृत जैन व्याकरण और कोश की परम्परा", श्री कालूगणि जन्म शताब्दी समारोह समिति, छापर (राजस्थान), 1977, में “संस्कृत के जैन वैयाकरण : एक मूल्यांकन' शीर्षक निबन्ध, पृ. 39 . 4. वही, पृ. 39 5. डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री, "तीर्थंकर महावीर और उनकी प्राचार्य परम्परा" (ती. म प्रा. ___प.), भाग-2, भारतवर्षीय दि. जैन विद्वत्परिषद्, 1974 पृ 225 6. राबर्ट बिरवे (Robert Birwe), इंस्टीट्यूट फॉर इण्डोलॉजी, कोल्न यूनिवर्सिटी का "शाकटायन व्याकरण", भारतीय ज्ञानपीठ, 1971, में "इण्ट्रोडक्शन", पृ. 25 7. डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री, "ती म.प्रा.प." भाग-2, पृ. 230 8. पं. फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री, “सर्वार्थ सिद्धि", भारतीय ज्ञानपीठ, 1944, प्रस्तावना, पृ. 90 9. डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री, "ती.म.ग्रा.प." भाग-2, पृ. 232 10. पं. फूलचन्द्र सि. शा "सर्वार्थसिद्धि", प्रस्तावना पृ. 90 11. डॉ. गोकुलचन्द्र जैन "संस्कृत प्राकृत जैन व्याकरण और कोश की परम्परा", पृ. 55-59 12. पं. फूलचन्द्र सि. शा. “सर्वार्थसिद्धि", प्रस्तावना, पृ 91-92 13. हरिवंशपुराण, 1/3, भारतीय ज्ञानपीठ, वि. सं. 2019 14. डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल “जैनेन्द्र महावृत्ति की भूमिका", पृ. 6-12
SR No.524760
Book TitleJain Vidya 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size10 MB
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