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________________ जैनविद्या - 12 जैनेन्द्र व्याकरण की टीकाएँ जिस प्रकार पाणिनि व्याकरण पर वार्तिक, भाष्य, काशिका - वृत्ति, तत्वबोधिनी आदि टीका- ग्रन्थ लिखे गए, उसी प्रकार जैनेन्द्र व्याकरण पर न्यास, महावृत्ति, पञ्चवस्तुटीका आदि विविध टीका-प्रटीका ग्रन्थ लिखे गए जो निम्न प्रकार हैं 1. स्वोपज्ञ 'जैनेन्द्र न्यास' - यह प्राचार्य पूज्यपाद द्वारा जैनेन्द्र व्याकरण पर स्वनिर्मित 'न्यास' है जो ग्राजकल उपलब्ध नहीं है । 43 2. 'जैनेन्द्र महावृत्ति' -- इसके रचनाकार प्राचार्य अभयनन्दी का समय विक्रम की 8-9 वीं शताब्दी है । यह महावृत्ति 12,000 श्लोकप्रमाण है । महावृत्ति के उदाहरणों में जैन तीर्थंकरों, महापुरुषों, ग्रन्थों और ग्रन्थकारों के नाम श्राए हैं। जैसे- सूत्र 1/4/15 में, 'अनुशालिभद्रम् श्राढ्याः' तथा 'अनुसमन्तभद्रं तार्किकाः' । सूत्र 1/4/16 में, ' उपसिंहनन्दिनं कवयः' तथा 'उपसिद्धसेनं वैयाकरणाः' । सूत्र 1 / 3 / 10 में, 'कुमारं यशः समन्तभद्रस्य' । 3. शब्दाम्भोजभास्कर - न्यास - इसके कर्ता प्रा. प्रभाचन्द्र ।। वीं शती के प्रसिद्ध विद्वान् हैं । यह न्यास 16,000 श्लोक प्रमाण है । इसका कुछ भाग अभी भी अनुलब्ध है । 4. प्राचार्य श्रुतकीर्तिकृत 'पञ्चवस्तु' - यह टीका, जैनेन्द्र व्याकरण का प्रक्रिया ग्रन्थ है, जो 3300 श्लोकप्रमारण है । इसकी रचना शक सं. 1011 (वि. सं. 1146) में की गई । 5. लघु जैनेन्द्र - विक्रम की 12 वीं शती के विद्वान् पं. महाचन्द्र ने जैनेन्द्र व्याकरण पर अभयनन्दीकृत महावृत्ति के आधार पर 'लघु जैनेन्द्र' नामक टीका लिखी । 6. शब्दार्णव – प्राचार्य गुणनन्दी ने जैनेन्द्र परिवर्धित करके सर्वाङ्गपूर्ण बनाने का प्रयत्न किया है। हुई । व्याकरण के सूत्रों को परिवर्तित एवं इसकी रचना वि. सं. 1036 के पूर्व 7. शब्दारणवचन्द्रिका- - प्रा. गुणनन्दी के शब्दार्णव पर प्रा. सोमदेव ने इस विस्तृत टीका की रचना की । 8. शब्दार्णव प्रक्रिया - यह 'जैनेन्द्र प्रक्रिया' के नाम से प्रसिद्ध है । इसे प्रा. सोमदेव की 'शब्दार्णव चन्द्रिका' के आधार पर प्रक्रियाबद्ध रूप में लिखा गया है । इसका कर्तृत्व विवादग्रस्त है यद्यपि ग्रन्थ के अन्त में प्राचार्य गुरणनन्दी का निम्न प्रकार उल्लेख हुआ हैराजन्मृगाधिराजो गुणनन्दी मुवि चिरं जीयात् । 9. जैनेन्द्र व्याकरण वृत्ति- - राजस्थान के शास्त्र भंडारों की ग्रन्थ सूची भाग 2, पृ. 250 पर मेघविजय द्वारा रचित उक्त वृत्ति का उल्लेख है । 10. श्रनिटकारिकावचूरि - जैनेन्द्र व्याकरण की अनिटकारिका पर श्वेताम्बर जैन मुनि विजयविमल ने 17 वीं शती में इस अवचूरी की रचना की ।
SR No.524760
Book TitleJain Vidya 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size10 MB
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