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________________ 42 जैन विद्या-12 भाषा का समावेश करने के लिए नए-नए प्रयोगों को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया गया है । जैसे पव्यम्, अवश्यपाव्यम्, नौयानम्, गोयानम् आदि । जैनेन्द्र व्याकरण में स्त्री प्रत्यय, समास एवं कारक सम्बन्धी भी कतिपय विशेषताएं हैं । पञ्चमी विभक्ति का अनुशासन सबसे पहले लिखा है । पश्चात् चतुर्थी, तृतीया, सप्तमी एवं षष्ठी विभक्ति का नियमन है । इसी प्रकार तिङन्त, तद्धित और कृदन्त प्रकरणों में भी अनेक विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं। 7 पाणिनि-व्याकरण से वैशिष्ट्य-जैनेन्द्र व्याकरण की अनेक विशेषताएँ हैं जो उसे पाणिनि-व्याकरण से पृथक् करती हैं। उनमें संज्ञा एवं सूत्रों का लाघव प्रधान है । ___ संज्ञा लाघव-'अल्पाक्षरमसंदिग्धं सूत्रं सूत्रविदो विदुः' इस पारम्परिक कथन से सूत्र पद्धति की सबसे प्रमुख विशेषता 'अल्पाक्षरता' है। यह विशेषता जैनेन्द्र व्याकरण की संज्ञाओं में तथा सूत्रों में पाणिनि की अपेक्षा अधिक द्रष्टव्य है । जिन संज्ञाओं के लिए पाणिनि ने कई अक्षरों के संकेत कल्पित किए हैं, उनके लिए जैनेन्द्र व्याकरण में और लाघव है । प्रायः एक अक्षरात्मक संज्ञा से काम लिया गया है । तुलना के लिए देखिएपाणिनि-व्याकरण जैनेन्द्र-व्याकरण ह्रस्व, दीर्घ,प्लुत, प्र, दी, प सवर्ण. अनुनासिक वृद्धि निष्ठा प्रातिपदिक FER लोप सूत्र लाघव-जैनेन्द्र-व्याकरण में उपर्युक्त संज्ञा लाघव के कारण सूत्र रचना में भी शब्द लाघव के दर्शन पाणिनि की अपेक्षा अधिक होते हैं । यथापाणिनि-व्याकरण जैनेन्द्र-व्याकरण झरो झरि सवर्णे झरो झरि स्वे. हलो यमा यमि लोपः हलो यमा यमि खम् तुल्यास्यप्रयत्नं सवर्णम् सस्थानक्रियं स्वम् अकालोऽज्झस्वदीर्घप्लुतः प्राकालोऽ च प्रदीपः ईदेद्धिवचनं प्रगृह्यम् ईद्देद् द्विद्भिः विपराभ्यां जे: विपराजेः .
SR No.524760
Book TitleJain Vidya 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size10 MB
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