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________________ 40 जैनविद्या-12 अर्धमागधी-आगम ग्रन्थों में व्याकरण की अनेक बातें आई हैं। 'ठाणांग' के अष्टम स्थान में आठ कारकों का निरूपण है। 'अनुयोग-द्वार-सूत्र' में तीन वचन, लिङ्ग, काल और पुरुषों का विवेचन मिलता है। इसी ग्रन्थ में चार, पाँच और दश प्रकार की संज्ञाओं का उल्लेख आया है । सूत्र 130 में सात समासों और पाँच प्रकार के पदों का कथन किया गया है। इससे प्रतीत होता है कि संस्कृत में व्याकरण ग्रन्थों के प्रणयन के पूर्व जैनाचार्यों ने प्राकृत में व्याकरण ग्रन्थों की रचना की होगी जो अाज उपलब्ध नहीं है । 3 जैन संस्कृत व्याकरण के 'मुनित्रय' संस्कृत व्याकरण के महर्षि पाणिनि, कात्यायन एवं पतञ्जलि नाम के तीन मुनि प्रसिद्ध हैं जिन्हें भट्टोजि दीक्षित ने अपनी सिद्धान्तकौमुदी के प्रारम्भिक मंगलाचरण में 'मुनित्रयं नमस्कृत्य' कहकर नमस्कार किया है । ___इसी प्रकार जैन व्याकरण साहित्य के इतिहास में भी 'मुनित्रय' प्रसिद्ध हैं-प्रथम जैनेन्द्रव्याकरणकार आचार्य पूज्यपाद देवनन्दी, द्वितीय शाकटायन (शब्दानुशासनकार) प्राचार्य पाल्यकीर्ति शाकटायन तथा तृतीय सिद्धहेम-शब्दानुशासनकार प्राचार्य हेमचन्द्र । इन तीनों मुनियों के व्याकरण शास्त्र तथा उन पर लिखे गए न्यास, वृत्ति आदि टीकाग्रन्थों के अध्ययन करने से इस बात की स्पष्ट प्रतीति होती है कि जैन आचार्यों ने संस्कृत व्याकरणशास्त्र परम्परा के उन्नयन में पर्याप्त अवदान किया है । प्राचार्य पूज्यपाद देवनन्दी जीवन परिचय-कवि, वैयाकरण एवं दार्शनिक इन तीनों व्यक्तित्वों का, प्राचार्य पूज्यपाद देवनन्दी में अद्भुत समवाय था। इनका मूलनाम देवनन्दी था और पूज्यपाद इनकी उपाधि, तो भी ये पूज्यपाद के नाम से अधिक प्रसिद्ध हुए। इनके पिता का नाम माधवभट्ट और माता का नाम श्री देवी था। ये कर्णाटक प्रान्त के 'कोले' नामक ग्राम के निवासी और जन्म से ब्राह्मण थे । पूज्यपाद के पिता ने अपनी पत्नी के प्राग्रह से जैनधर्म स्वीकार किया था । कहा जाता है कि पूज्यपाद ने बचपन में ही नाग द्वारा निगले गए मेंढक की तड़पन देखकर विरक्त हो दिगम्बरी दीक्षा धारण की थी । इनका समय ई. सन् की छठी शताब्दी रचनाएं-पूज्यपाद द्वारा लिखित सात रचनाएँ आजकल उपलब्ध हैं1–दश भक्ति, 2-जन्माभिषेक, 3-तत्त्वार्थवृत्ति (सर्वार्थसिद्धि), 4-समाधितन्त्र, 5-इष्टोपदेश, 6--सिद्धिप्रियस्तोत्र तथा 7-जैनेन्द्र व्याकरण ।
SR No.524760
Book TitleJain Vidya 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size10 MB
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