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________________ जैनविद्या-12 15 ."गमयोः पाठकरबलाबालादिभिज्ञातुं न शक्यते ततः संस्कृतप्राकृतपाठकानां सुखज्ञानकारणवृत्तिरियमभिधीयते ! । 'जिनेन्द्रकल्याणाभ्युदय' ग्रन्थ की रचना करते हुए अय्यपार्य कवि लिखते हैं कि पूज्यपादादि प्राचार्यों ने जो पहले जिनार्चासंबंधी साहित्य रचा है उन्हीं का सारांश लेकर मैं यह ग्रन्थ लिख रहा हूँ, यथा वीराचार्य-सुपूज्यपाद-जिनसेनाचार्य-संभाषितो, यः पूर्व गुणभद्रसूरिवसुनंदीन्द्रादिनंद्याजितः । यश्चाशाधरहस्तिमल्लकथितो यश्चैकसंधिस्ततः, तेभ्यः स्वाहृत्सारमध्यरचितः स्याज्जैनपूजाक्रमः। पं. गोबिन्द ने अपने ग्रन्थ 'पुरुषार्थानुशासन' में विभिन्न प्राचार्यों का पुण्यस्मरण करते हुए पूज्यपाद स्वामी के व्याकरण ज्ञान को सराहा है, यथा श्री पूज्यपादभगवत्प्रमुखाः विमुखाकुमार्गतो कुर्वन् । व्याकरणानि, नृणां बाङ्गमलघ्न व्याकरणनिपुणानि ॥ श्री प्रभाचन्द्राचार्य ने पूज्यपाद स्वामी के जैनेन्द्र-व्याकरण की टीका "शब्दाम्भोजभास्कर" अपरनाम जैनेन्द्रमहान्यास में सिद्ध भगवान् की वंदना करते हुए पूज्यपाद स्वामी का पुनः स्मरण किया है, यथा : श्री पूज्यपादमकलंकमनंतबोधं, शब्दार्थसंशयहरं निखिलेषु बोधं । सच्छब्दलक्षरणमशेषमतः प्रसिद्ध वक्ष्ये परिस्फुटमलं प्रणिपत्य सिद्धम् ॥ आगे प्रभाचन्द्रचार्य लिखते हैं-श्री पूज्यपादस्वामी विनेयानां शब्दसाधुत्वाऽसाधुत्वविवेकप्रतिपत्यर्थं शब्दलक्षणप्रणयनं कुर्वाणो निर्विघ्नतः शास्त्रपरिसमाप्त्यादिक फलमभिलषनिष्टदेवतास्तुतिविषयनमस्कुर्वन्नाह' । तत्वार्थसूत्र की टीका करते हुए प्रभाचन्दाचार्य ने अपने 'तत्वार्थ-वृत्तिपद' नामक ग्रन्थ में पूज्यपाद स्वामी के प्रति भक्ति प्रकट करते हुए लिखा है श्रीपद्मनन्दिसैद्धान्तशिष्योऽ नेकगुणालयः । प्रभाचन्द्रश्चिरं जीयात् पादपूज्यपदेरतः ॥ श्री सोमदेव ने अपने "शब्दार्णवचन्द्रिकावृत्ति" नामक ग्रन्थ में ऋषभदेव, महावीर सिद्ध भगवान् की स्तुति करते हुए पूज्यपाद स्वामी का उल्लेख किया है : श्रीपूज्यपादममलं गुणनन्दिदेवं सोमामरव्रतिपपूजितपादयुग्मम् । सिद्ध समुन्नतपदं वृषभं जिनेन्द्रं सच्छन्दलक्षणभहं विनिमामि वीरम् ॥
SR No.524760
Book TitleJain Vidya 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size10 MB
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