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सिरिपुज्जपादसीसो दाविडसंघस्स कारगो दुट्ठो । वज्जरगंदी पाहुडवेदी
रामे
महात्यो ||
पंचसएछब्बीस विक्कम रास्स दक्खिमदुराजादो दाविड संधो
मरणपत्तस्स ।
महामोहो ||
कच्छखेत्त वर्साद वाणिज्जं कारिऊरण हंतो सीयलनीरे पाव पउरं च
जीवन्तो ।
संचेदि ॥
श्री वादिराज सूरि ने अपने 'न्यायविनिश्चय' नामक ग्रन्थ में अन्य प्राचार्यो के साथसाथ पूज्यपाद स्वामी की भी वंदना की है, यथा
विद्यानंदमनन्तवीर्यसुखदं श्री पूज्यपादं दया, पालं सन्मतिसागरं कनकसेनाराध्यमभ्युद्यमी ।
शुद्ध्यन्नीतीनरेन्द्रसेनम कलंकवादिराजं सदा, श्रीमत्स्वामी समन्तभद्रमतुलं वंदे जिनेन्द्रं मुदा ॥
श्री सोमदेव सूरि ने 'त्रिभङ गीसार टीका' में लिखा है कि श्री पूज्यपाद स्वामी की कृपा से जिनोक्त शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त हुआ
जैनविद्या - 12
श्रीमज्जिनोक्तानि समंजसानि शास्त्रारिण लेभे स यथात्मशक्त्या । श्री मूलसंघाब्धि विवर्द्धनेन्दोः श्रीपूज्यपाद प्रभु सत्प्रसादात् ॥
भ. शुभचन्द्र ने अपने 'पाण्डवपुराण' में पूज्यपाद स्वामी की वंदना करते हुए लिखा हैपूज्यपादः सदापूज्यपादः पूज्यैः पुनातु मां ।
येन तीर्णो व्याकरणार्णवो विस्तीर्ण सद्गुणः ॥
'जीवंधर चरित्र' में पूज्यपाद स्वामी का पुण्य स्मरण करते हुए भ. शुभचन्द्र लिखते है
गौतमं धर्मपारीणं पूज्यपादं प्रबोधकम् । समन्तभद्रमानन्दमकलंकं गुरणाकरं ॥
श्री जयकीर्ति ने अपने 'छंदोनुशासन' ग्रन्थ की रचना में पूज्यपाद स्वामी के छन्द शास्त्र का अनुकरण किया था अतः लिखते हैं
माण्डव्वपिङ्गलजनाश्रयसे तवाख्यं,
श्री पूज्यपादजयदेव बुधादिकानाम् ।
छन्दांसि वीक्ष्य विविधानपि सत्प्रयोगान्, छन्दोनुशासनमिदं जयकीर्तिनोक्तम् ।
न. योगदेव ने 'तत्वार्थ सूत्रसुखबोधवृत्ति' ग्रन्थ रचते हुए लिखा हैपादपूज्य विद्यानंदाभ्यां यद्वृत्तिद्वयमुक्तं तत्केवलं तर्क