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________________ 14 सिरिपुज्जपादसीसो दाविडसंघस्स कारगो दुट्ठो । वज्जरगंदी पाहुडवेदी रामे महात्यो || पंचसएछब्बीस विक्कम रास्स दक्खिमदुराजादो दाविड संधो मरणपत्तस्स । महामोहो || कच्छखेत्त वर्साद वाणिज्जं कारिऊरण हंतो सीयलनीरे पाव पउरं च जीवन्तो । संचेदि ॥ श्री वादिराज सूरि ने अपने 'न्यायविनिश्चय' नामक ग्रन्थ में अन्य प्राचार्यो के साथसाथ पूज्यपाद स्वामी की भी वंदना की है, यथा विद्यानंदमनन्तवीर्यसुखदं श्री पूज्यपादं दया, पालं सन्मतिसागरं कनकसेनाराध्यमभ्युद्यमी । शुद्ध्यन्नीतीनरेन्द्रसेनम कलंकवादिराजं सदा, श्रीमत्स्वामी समन्तभद्रमतुलं वंदे जिनेन्द्रं मुदा ॥ श्री सोमदेव सूरि ने 'त्रिभङ गीसार टीका' में लिखा है कि श्री पूज्यपाद स्वामी की कृपा से जिनोक्त शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त हुआ जैनविद्या - 12 श्रीमज्जिनोक्तानि समंजसानि शास्त्रारिण लेभे स यथात्मशक्त्या । श्री मूलसंघाब्धि विवर्द्धनेन्दोः श्रीपूज्यपाद प्रभु सत्प्रसादात् ॥ भ. शुभचन्द्र ने अपने 'पाण्डवपुराण' में पूज्यपाद स्वामी की वंदना करते हुए लिखा हैपूज्यपादः सदापूज्यपादः पूज्यैः पुनातु मां । येन तीर्णो व्याकरणार्णवो विस्तीर्ण सद्गुणः ॥ 'जीवंधर चरित्र' में पूज्यपाद स्वामी का पुण्य स्मरण करते हुए भ. शुभचन्द्र लिखते है गौतमं धर्मपारीणं पूज्यपादं प्रबोधकम् । समन्तभद्रमानन्दमकलंकं गुरणाकरं ॥ श्री जयकीर्ति ने अपने 'छंदोनुशासन' ग्रन्थ की रचना में पूज्यपाद स्वामी के छन्द शास्त्र का अनुकरण किया था अतः लिखते हैं माण्डव्वपिङ्गलजनाश्रयसे तवाख्यं, श्री पूज्यपादजयदेव बुधादिकानाम् । छन्दांसि वीक्ष्य विविधानपि सत्प्रयोगान्, छन्दोनुशासनमिदं जयकीर्तिनोक्तम् । न. योगदेव ने 'तत्वार्थ सूत्रसुखबोधवृत्ति' ग्रन्थ रचते हुए लिखा हैपादपूज्य विद्यानंदाभ्यां यद्वृत्तिद्वयमुक्तं तत्केवलं तर्क
SR No.524760
Book TitleJain Vidya 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size10 MB
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