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________________ जैनविद्या 12 सिद्धान्ते श्री वीरसेनसदृशः शास्त्राब्जभा भास्करः, षट्तर्केष्वकलंकदेवविवुधः साक्षादयं भूतले । सर्व व्याकरणे विपश्चिदधिपः श्री पूज्यपादस्स्वयं, त्रैविद्योत्तममेधचन्द्रमुनिपो वादीभ पञ्चाननः ॥ इसी चन्द्रगिरि की कत्तिले वसदि के द्वार से दक्षिण दिशा की ओर एक स्तम्भ पर सन् 1100 के अभिलेख में अकलंक, भारवि, जिनचन्द्र आदि के साथ पूज्यपाद स्वामी का भी उल्लेख है । यथा— जैनेन्द्र पूज्यपादः सकलसमयतर्के च भट्टाकलङ्कः, साहित्य भारविस्स्यात्क विगमक महावादवाग्मित्वरुद्रः । गीते वाद्ये च नृत्ये दिशि विदिशि च संवत सत्कीर्तिमूर्ति, स्थेयाच्छ्री यो निवृन्दाचतपद जिनचन्द्रो वितन्द्रो मुनीन्द्रः ॥ विन्ध्यगिरि पर्वत की सिद्धरवसदि के उत्तर दिशा में स्थित स्तम्भ पर सन् 1398 ई. के अभिलेख में श्री पूज्यपाद की प्रशस्ति रूपक श्लोक अंकित है जिनमें उनके विभिन्न नामों की या प्रस्तुत की गई है, यथा प्रागभ्यधायि गुरुणा किल देवनंदी, बुद्ध्या पुनवप्रलयास जिनेन्द्रबुद्धिः । श्री पूज्यपाद इति चैष बुधैः प्रचख्ये यत्पूजितः पदयुगे वनदेवताभिः ॥ इसी विन्ध्यगिरि पर सिद्धरवसदि की दक्षिण दिशा में स्थित स्तम्भ पर सन् 1433 ई. के अभिलेख में श्री पूज्यपाद स्वामी की विभिन्न विशेषताओं का अकन करते हुए लिखा है कि उनके चरणों को धोये हुए जल स्पर्श से लोहा भी सोना हो जाता था, यथा श्री पूज्यपादो धृत धर्मराज्यस्ततो सुराधीश्वर पूज्यपादः, यदी दुष्यगुरणा निदानों वदन्ति शास्त्राणितदुद्धृतानि । धृत विश्वबुद्धिरयमत्र योगिभिः कृतकृत्यभावामनुविभदुच्चकैः जिनवद्बभूव यदङ्ग चापह त सः जिनेन्द्रबुद्धिरिति साधुवतिः ।। श्री पूज्यपादमुनिः प्रतिमौषर्धाद्ध ज्जीयाद्विदेह जिनदर्शनपूतगात्रः, यत्पादधौत जनसंस्पर्शप्रभावात्कालायसं किल तदा कनकीचकार । 13 इसी स्तम्भ की दूसरी दशा में निम्न श्लोक भी अंकित है समन्तभद्रोप्य समन्तभद्रः श्री पूज्यपादोऽपि न पूज्यपादः । मयूरपिच्छो प्यमयूरपिच्छश्चित्रे विरुद्धोऽप्यविरुद्ध एषः ॥ आचार्य पूज्यपाद के शिष्य वज्रनन्दी ने वि. सं. 526 में दक्षिण मथुरा ( मदुरै ) में द्राविड़ संघ की स्थापना की थी और कुछ शिथिलाचार प्रवर्तित किया था इसी को लक्ष्य कर दर्शनसार के कर्त्ता श्राचार्य देवसेन ने लिखा है : :–
SR No.524760
Book TitleJain Vidya 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size10 MB
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