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________________ 12 जैनविद्या 12 हुम्मच (कर्नाटक) की पञ्चवसदि के आंगन में शक सं. 999 (1077 ई.) के विशाल शिलालेख में वज्रनंदी अकलंक आदि प्राचार्यों के साथ-साथ श्री पूज्यपाद स्वामी का भी उल्लेख है। इसी तरह बलगाम्बे में वगियरहोण्ड के पास 1077 ई. के एक शिलालेख में अकलंक, समन्तभद्र, रामसेन आदि के साथ-साथ पूज्यपाद का भी नामोल्लेख है । ये कन्नड लिपि में उत्कीर्ण हैं। श्रवणवेल्गुलु के विन्ध्यगिरि पर्वत पर शक सं. 1432 के शिलालेख में कुन्दकुन्द के समान श्री पूज्यपाद के वैदुष्य को प्रकट करते हुए लिखा है शब्दे श्री पूज्यपादः सकलविमतजित्तर्कतन्त्रेषु देवः सिद्धान्ते सत्यरूपे जिनविनिगदिते गौतमः कौण्डकुन्दः । अध्यात्मे वर्द्धमानो मनसिज मथने वारिभुग्दुःखवन्हा, वित्येव कीर्तिपात्रं श्रुत मुनिवदभूत् भूत्रये कोऽत्र कश्चित् ॥ श्री पूज्यपाद स्वामी का विस्तृत जीवनचरित्र चन्द्रय्यकवि ने 'पूज्यपादचरिते' तथा श्री देवचन्द्र ने 'राजबलिकथे' नामक कन्नड ग्रन्थों में विशदरूप से वणित किया है। इनमें इनके पिता का नाम माधव भट्ट तथा माता का नाम श्री देवी बताया है । यह कर्नाटक के कोले नामक ग्राम के ब्राह्मण कुल में पैदा हुए थे। कहते हैं बाल्यकाल में एक दिन सर्प द्वारा मेंढक निगल लेने पर मेंढक की पीड़ा और तड़फन देखकर आपको वैराग्य हो गया और आपने जैनेश्वरी दीक्षा धारण कर ली। आप मूलसंघ के अन्तर्गत नंदीसंघ की बलात्कारगण सरस्वतीगच्छ के पट्टाधीश थे और कुन्दकुन्द गृद्ध पिच्छ प्रभृति विद्वानों की परम्परा के सारस्वत आचार्य थे। श्रवणवेल्गुलु के कांचिनद्रोणे मार्ग पर कगे ब्रह्मदेव स्तम्भ विद्यमान है उसके दक्षिणमुखी भाग पर शक सं. 1085 (1163 ई.) के शिलालेख में श्री पूज्यपाद की कृतियों का उल्लेख करते हुए लिखा है-- यो देवनन्दि प्रथमाभिधानो बुद्ध या महत्या सः जिनेन्द्रबुद्धिः श्री पूज्यपादोऽजनि देवताभिर्यत्पूजितं पादयुगं यदीयं । जैनेन्द्र निजशब्दभोगमतुलं सर्वार्थसिद्धिःपरा सिद्धान्ते निपुणत्वमुद्धकवितां जैनाभिषेकः स्वकः । छन्द सूक्ष्मधियं समाधिशतकं स्वास्थ्यं यदीयं विदा माख्यातीह सः पूज्यपादमुनिपः पूज्यो मुनीनां गणैः । श्रवणवेल्गुलु के चन्द्रगिरि पर्वत की एरडुकदे वसदि के पश्चिम भाग में स्थित मण्डप के द्वितीय स्तम्भ के दक्षिणाभिमुखी भाग पर सन् 1115 ई. के स्तम्भ लेख में श्री वीरसेन, अकलंक, मेघचन्द्रत्रविद्य आदि विद्वानों की श्री पूज्यपाद से तुलना करते हुए उनकी (पूज्यपाद की) व्याकरणविदग्धता का अङकन निम्न प्रकार है
SR No.524760
Book TitleJain Vidya 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size10 MB
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