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________________ जैनविद्या-12 11 प्राचार्य पूज्यपाद आयुर्वेद विज्ञान, शल्य-तंत्र शास्त्र के विशेषज्ञ थे, प्रसिद्ध आयुर्वेदवेत्ता प्राचार्य उग्रादित्य ने अपने "कल्याणकारक" जैन वैद्यक ग्रन्थ में पूज्यपाद का पुण्यस्मरण करते हुए उन्हें शल्यचिकित्सा का महान् पंडित लिखा है: शालाक्यं पूज्यपाद प्रकटित माधिक शल्यतंत्रं च पात्र-- स्वामि प्रोक्तं विषोग्रहशमनविधिः सिद्धसेनः प्रसिधैः ॥ इस श्लोक से यह भी ध्वनित होता है कि सिद्धसेन ने “विषोग्रहशमनविधि" तथा पात्रस्वामी ने 'शल्यतंत्र' नामक ग्रन्थ लिखे थे जो अाज अनुपलब्ध हैं। जैनसिद्धान्तभास्कर वर्ष एक किरण चार में प्रकाशित 'गुर्वावली' के अनुसार प्राचार्य प्रभाचन्द्र (सं. 1310) ने पूज्यपाद के शास्त्रों की व्याख्या में अद्भुत ख्याति अर्जित की थी। पट्ट श्रीरत्नकीर्तेरनुपमतपसः पूज्यपादीय शास्त्र, व्याख्या विख्यातकोतिः गुरणगरणनिधिपः सत्क्रियाचारुचञ्चुः । श्रीमानानन्दधामं प्रतिबुधनुतमामान संदा विवादो, जीयादाचन्द्रतारं नरपतिविदितः श्री प्रभाचन्द्र देवः ॥ श्री वादिराज कवि ने अपने 'पार्श्वनाथ चरित' में श्री पूज्यपाद देव का पुण्यस्मरण करते हुए लिखा है अचिन्त्य महिमा देवः सोऽभिवन्द्यो हितैषिणा । शब्दाश्च येन सिध्यन्ते साधुत्व प्रतिलम्भितः॥ हुम्मच (कन्नड) के पद्मावती मन्दिर स्थित एक शिलालेख में श्री पूज्यपाद को अपने "जैनेन्द्र व्याकरण" पर जैनेन्द्रन्यासवृत्ति तथा पाणिनि व्याकरण पर शब्दावतारन्यासवृत्ति रचने का अभिलेख है । यह शिलालेख 1500 ईस्वी के आसपास का उत्कीरिणत है। न्यासं जैनेन्द्रसंज्ञं सकलबुधनुत पाणिनियस्य भूयो न्यासं शब्दावतारं मनुजततिहितं वैद्यशास्त्रं च कृत्वा । यस्तत्वार्थस्यटीकां व्यरचदिह तां भात्यसौ पूज्यपादः, स्वामी भूपालवन्द्यः स्वपरहितः वचः पूर्णट्टग्बोधवृ त्तः ॥ कर्नाटक के वन्दलिके वसदि में स्थित शक सं. 996 (1064) के शिलालेख में समन्तभद्र और अकलङ क के साथ साथ पूज्यपाद का भी अभिलेख है - भद्रंसमन्तभद्रस्य पूज्यपादस्य सन्मतेः । अकलङकगुरोभूयात् शासनाय जिनेशिनः ॥
SR No.524760
Book TitleJain Vidya 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size10 MB
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