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आचार्य पूज्यपाद -पं. नरेन्द्रकुमार भिसीकर शास्त्री, (न्यायतीर्थ-महामहिमोपाध्याय) सोलापूर
प्राचार्य पूज्यपाद मूलसंघ के नंदीसंघ में ईसा की पांचवी शताब्दी में दि. जैन साहित्य, दर्शन तथा व्याकरण शास्त्र के प्रमुख आचार्य हो गये हैं ।
श्री पूज्यपाद मुनिरप्रतिमौषद्धि : । जीयात् विदेहजिनदर्शनपूतगात्र : ॥ यत्पादधौतजलसंस्पृशप्रभावात् ।
कालायसं किल तदा कनकीचकार ॥ प्राचार्य पूज्यपाद के जीवन में प्रमुखता से तीन घटनायें घटित हुईं - 1. प्राचार्य पूज्यपाद को तप के प्रभाव से औषध ऋद्धि प्राप्त हुई थी। 2. विदेहक्षेत्र में जाकर भगवान् सीमंधर की दिव्यध्वनि सुनकर उन्होंने अपना
मानवजीवन पवित्र किया था। उनको चारणऋद्धि प्राप्त थी। 3. उनके पाद प्रक्षालन द्वारा पवित्र जल के स्पर्श मात्र से लोहा भी सुवर्ण बन जाता
था। प्रांखों की ज्योति कम होने पर उन्होंने शांतिनाथ भगवान् की स्तुति की
शांति शांतिजिनेन्द्र शांतमनसा त्वत्पादपद्माश्रयात् । संप्राप्ताः पृथिवीतलेषु बहवः शांयथिनः प्राणिनः । कारुण्यान्मम भाक्तिकस्य च विभो दृष्टि प्रसन्नां कुरु । त्वत्पादद्वयदैवतस्य गदतः शांत्यष्टकं भक्तितः ॥