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...... तत्वार्थसूत्र अपरनाम मोक्षशास्त्र जनों के समस्त सम्प्रदायों में समानरूप से समादृत है। प्राचार्यश्री पूज्यपाद ने इसकी सर्वार्थसिद्धि अपरनाम तात्पर्यवृत्ति नाम से जो टीका रची वह सर्वाधिक प्रामाणिक मानी जाती है।
इनके द्वारा रचित संस्कृत भाषा की भक्तियां भी केवल भक्तिरस की गंगा ही प्रवाहित नहीं करतीं उपास्य के स्वरूप का भो स्पष्ट प्रतिपादन करती हैं ।
ब्याकरण शास्त्र के भी वे अधिकारी विद्वान् थे। जिस प्रकार कालिदास की उपमा, भारवि का अर्थगौरव और दण्डी का पदलालित्य अपनी समता नहीं रखते उसी प्रकार उनके लक्षण भी बेजोड़ माने जाते हैं ।
ऐसे महान् प्राचार्य एवं उनके कर्तृत्व का यत्किञ्चित परिचय इस अंक में प्रकाशित करते हुए हमें प्रसन्नता है । आशा है अन्य प्रकाशनों की भांति ही हमारा यह प्रकाशन भी पाठकों को लाभकर एवं रुचिकर होगा ।
इस अंक में अपभ्रंश की एक लघु रचना भी सदा की मांति सानुवाद प्रकाशित है । इस बार इसमें अनुक्रमणिका देकर इसे और भी उपयोगी बनाने का प्रयत्न किया गया है । - आचार्य पूज्यपाद के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को जन-साधारण के समक्ष प्रकाश में लाकर जनविद्या संस्थान ने उन आचार्यों एवं मनीषियों के प्रति, जिन्होंने प्राणिमात्र के लिए आत्म-कल्याण का मार्ग प्रशस्त कर उपकार किया, कृतज्ञता भाव प्रकट कर स्तुत्य एवं सराहनीय प्रयास किया है, उसके लिए संयोजकजी, जनविद्या संस्थान समिति, सम्पादक मण्डल एवं उनके सहयोगी निश्चित ही साधुवाद के पात्र हैं। संस्थान भविष्य में भी ऐसी महान् आत्माओं के सम्बन्ध में ऐसे विशेषांक प्रकाशित करता रहेगा।
वे सब महानुभाव भी जिन्होंने इस अंक के सम्पादन, प्रकाशन तथा मुद्रण में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सहयोग प्रदान किया है, धन्यवाद तथा प्रशंसा के पात्र हैं।
कपूरचन्द पाटनी . प्रबन्ध सम्पादक
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