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प्रकाशकीय
___ श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी की प्रबन्धकारिणी कमेटी धर्मप्रेमी यात्री बन्धुओं द्वारा प्रदत्त द्रव्य को जहाँ यात्रियों के लिए आवश्यक सुख-सुविधा जुटाने, नवीन निर्माण कराने, मन्दिर का कला वैभव बढ़ाने, भक्तजनों द्वारा पर्व, उत्सव, पूजापाठ आदि धार्मिक आयोजनों के अवसर पर उन्हें आवश्यक सहयोग प्रदान करने तथा अन्य लोकोपयोगी/ लोक-कल्याणकारी कार्यों में व्यय करती है वहाँ वह जैनधर्म, दर्शन, साहित्य आदि के प्रचारप्रसार, प्राधुनिक शैली में नवीन साहित्य निर्माण तथा प्रकाशन आदि कार्यों में भी उत्साहपूर्वक प्रचुर द्रव्य व्यय कर रही है। कमेटी ने इसी उद्देश्य से जनविद्या संस्थान की स्थापना कर रखी है।
एतदर्थ जैनविद्या संस्थान और उससे सम्बद्ध अपभ्रंश साहित्य अकादमी योजनाबद्ध रूप में इस क्षेत्र में कार्यरत है। प्राचीन प्रसिद्ध जैनाचार्यों के व्यक्तित्व और कर्तृत्व पर जैनविद्या नामक शोधपत्रिका के माध्यम से विद्वानों के शोधपूर्ण निबन्ध प्रकाशित किये जाते हैं।
अब तक जनविद्या के विशेषांकों द्वारा स्वयंभू, पुष्पदन्त, धनपाल, वीर, मुनिनयनन्दि, कनकामर, योगीन्दु और प्राचार्य कुन्दकुन्द के जीवन, दर्शन और साहित्य पर प्रकाश डाला जा चुका है। प्रस्तुत अंक प्राचार्य पूज्यपाद से सम्बद्ध है।
प्राचार्य पूज्यपाद की तत्कालीन लब्ध-प्रतिष्ठ, प्रतिभासम्पन्न, अध्यात्म-पथ के पथिक, रत्नत्रय के धारी सारस्वत प्राचार्यों में गणना थी। वे समन्तभद्र और सिद्धसेन की कोटि के विद्वान् थे। प्रादिपुराण के कर्ता जिनसेन ने तो उनकी प्रशंसा में 'कवीनां तीर्थकृद्देवः' कहकर उन्हें कवि समाज का तीर्थकर बताया है। इससे ही उनकी महत्ता का सहज प्राकलन किया जा सकता है।
प्राचार्यश्री ने संस्कृत भाषा में अनेक विषयों पर प्राधिकारिक ग्रन्थ रचना कर उसके साहित्यिक भण्डार की श्रीवृद्धि की है।
समाधितन्त्र अपरनाम समाधिशतक मुमुक्षुत्रों के मार्गदर्शनार्थ दीपस्तम्भ के समान है। इसमें बहिरात्मा किस प्रकार अन्तरात्मा बन परमात्म-पद की प्राप्ति कर सकता है, इस प्रक्रिया का सरल और सुबोध ढंग से काव्यरूप में वर्णन किया गया है ।