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________________ जनविद्या-12 95 झाडइ-झाड़ देता है, मार देता है, झटक देता है । 18 झाणु-ध्यान । 6 ठाणु--स्थान । 6 ण-नहीं। 1,7 गाणपरो (गाणषरू)-ज्ञानघर, ज्ञानी । 3, 5 णाणवरो-जानकार, ज्ञानी। 3 णाणवहो–ज्ञानी । १ णिरंजणु-निरंजन, कालुष्यरहित । 8 णिवसइ-निवास करता है । 5 शिवइ-नृपति, राजा । 16 तंतु मंतु थे—तन्त्र मन्त्र से । 7 तच्च-तत्त्व । 20 तणु-शरीर । 16 तत्त्व--तत्त्व । 1 तसो (तसु ?)-उसके । 18 तातउ-ताता, गर्म । 14 तिउ-वैसा । 4 तिम-वैसा, तैसा । 19 तिसु (तसु)-उसके । 6, 7, 18, 20 तिसुकहु-उसके । 20 तिहुवातवलेमहि-तीन वातवलय के मध्य । 20 तीक्षणु-तीक्ष्ण, तीखा । 13 दसण-गाण-चरित्तधर-दर्शन, ज्ञान और चारित्र का धारी। 8 दोसइ–दिखाई देता है । 9, 15 दुगुरणादि-दो गुणादि । 11 दुरिउ-दुरित, पाप । 20 दुहं-दो। 1 दुहुकउ-दुःखी। 1 दोसु (बोस)-दोष । 7, 14 धणु-धनुष । 16 धम्मु-धर्म । 12 धवलउ-धवल, स्वच्छ, सफेद । 13 धान्तु-धातु । 15 धारण-धारणा, अवलम्बन । 7
SR No.524760
Book TitleJain Vidya 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size10 MB
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