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________________ 96 जैनविद्या-12 धेउ-ध्येय, ध्यान करने योग्य । 7 न (ना)-नहीं। 1, 2, 3, 3, 5 6 7 9 16 17 नयरिण-नेन, नैत्र । 9 नहु-नहीं। 12 नर (नरु)-मनुष्य, पुरुष । 19, 20 निज्जर-निर्जर । 18 नित-नित्य, हमेशा । 17 निवसइ-निवास करता है, रहता है । 10 निश्चइ-निश्चय । 5 नीपजइ–उत्पन्न होता है, निपजता है । 2 न्याता–ज्ञाता, जाननेवाला । 3 पछइ-पश्चात्, पीछे । 17 पढइ-पढ़ता है। 20 पढावइ–पढाता है । 20 पयडी-प्रकृति । 11 पयारि-प्रकार । 14 पयासिउ-प्रकाशित किया । 5, 11 परम-श्रेष्ठ, उत्कृष्ट । 8 परमपरो-उत्कृष्टतम । 5 परजाउ-पर्याय । 13 परवाण-परमाणु । 13 परिमाण-आकार । 11 परु-पर, पराया। 18 पहलइ-पहले । 17 पारणी-पानी; जल । 15 पाथरू-पत्थर । 17 पावई (पावइ)—पाता है, प्राप्त करता है । 4, 19, 20 पीलउ-पीला । 13 पुग्गलु-पुद्गल । 16 पुण्यपाप थे—पुण्यपाप से । 7 पूरि-भरा हुआ । 10 फासु-स्पर्श । 6 फिरत-घूमते, फिरते । 1 फूटइ-फूटता है । 3
SR No.524760
Book TitleJain Vidya 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size10 MB
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