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________________ 52 जैनविद्या कुन्दकुन्द साहित्य के सांस्कृतिक पक्ष की अद्यावधि उपेक्षा इसमें सन्देह नहीं कि 20वीं शताब्दी में कुन्दकुन्द-साहित्य का विस्तृत अध्ययन, तुलनात्मक चिन्तन, मनन, शोध एवं प्रकाशन हुआ है किन्तु इन अध्ययनों का मुख्य दृष्टिकोण केवल दर्शन एवं अध्यात्म तक ही सीमित रहा है। यह आश्चर्य का विषय है कि अभी तक अध्येताओं का ध्यान कुन्दकुन्द-साहित्य के सांस्कृतिक मूल्यांकन की ओर नहीं गया। अतः मैं अपने इस लघु निबन्ध में कुन्दकुन्द की रचनाओं में उपलब्ध कुछ सांस्कृतिक एवं तत्सम्बन्धी अन्य तथ्यों पर प्रकाश डालने का प्रयत्न कर रही हूँ। कुन्दकुन्द की बहुज्ञता कोई भी कवि साहित्य-लेखन के पूर्व अपने चतुर्दिक् व्याप्त जड़ और चेतन का गम्भीर अध्ययन ही नहीं करता बल्कि उससे साक्षात्कार करने का प्रयत्न भी करता है तभी वह अपने कविकर्म में चमत्कारजन्यसिद्धि प्राप्त कर पाता है। प्राचार्य कुन्दकुन्द के साहित्य का अध्ययन करने से यह तथ्य स्पष्ट विदित होता है। कुन्दकुन्द-साहित्य में उपलब्ध प्राच्य-भारतीय-भूगोल उनके 'दसमक्त्यादि संग्रह' में संग्रहीत निर्वाण-काण्ड को ही लिया जाय उसमें उन्होंने समकालीन देश, नगर, नदी एवं पर्वतों का गेय-शैली में जितना सुन्दर अंकन किया है वह अपूर्व है । जैन तीर्थों के इतिहास की दृष्टि से तो उसका विशेष महत्त्व है ही, प्राच्य-भारतीय भूगोल की दृष्टि से भी वह कम महत्त्वपूर्ण नहीं। यह ध्यातव्य है कि आचार्य कुन्दकुन्द ने परम्परा-प्राप्त जैन तीर्थ-भूमियों के रूप में जिस भारतीय भूगोल की जानकारी दी है वह ईसा की प्रथम शताब्दी का है। उन्होंने पर्वतराज हिमालय के गर्वोन्नत भव्य-भाल कैलाशपर्वत से लेकर जम्मू तक तथा गुजरात के गिरनार, दक्षिण के कुन्थलगिरि, पूर्वी भारत के सम्मेदगिरि तथा दक्षिण-पूर्व की कोटिशिला के चतुष्कोण के बीचों-बीच लगभग 40 प्रधान नगरों, पर्वतों एवं नदियों तथा द्वीपों के उल्लेख किये हैं । उसका वर्गीकरण निम्नप्रकार किया जा सकता है - उत्तरभारत -हस्तिनापुर, वाराणसी, मथुरा, अहिच्छत्र, जम्मू (नगर), अष्टापद (कैलाश पर्वत)। पश्चिमभारत-लाट देश, फलहोडी, बडग्राम (नगर), ऊर्जयन्त (गिरनारपर्वत), गजपंथा, शत्रुजय, तुंगीगिरि, द्रोणगिरि आदि । मध्यभारत -अचलपुर, बड़वानी, बड़नगर, मेढ़गिरि, पावागिरि, द्रोणगिरि, सोनागिरि, रेशिन्दीगिरि, सिद्धवरकूट, चूलगिरि, रेवा नदी, चेलना नदी। पूर्वभारत -चम्पापुरी, पावापुरी (नगर), सम्मेदशिखर, लोहागिरि, (लुहरदग्गा, वर्तमान बिहार)। दक्षिणभारत - कलिंगदेश, तारवर नगर, कुन्थलगिरि, कोटिशिला ।
SR No.524759
Book TitleJain Vidya 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1990
Total Pages180
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size15 MB
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