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________________ जैन विद्या अज्ञातस्थल-पोदनपुर, नागहृद, आशारम्भ । उक्त जैन-तीर्थों के चतुर्दिक् विस्तार से इस तथ्य पर भी प्रकाश पड़ता है कि जैनधर्म भारतव्यापी था । राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता हेतु उसके प्रयत्न प्रारम्भ से ही संरचनात्मक रहते पाये हैं। राजनीतिसम्बन्धी सन्दर्भ ___ सम्भवतः राजनीति एवं युद्ध के क्षेत्र में भी कवि के अपने कुछ अनुभव थे जो निम्न प्रकार हैं सप्तांगराज्य-मनुस्मृति', कौटिल्यअर्थशास्त्र एवं नीतिवाक्यामृत के अनुसार राज्य के सात अंग माने गए हैं । 1. स्वामी (अर्थात् राजा), 2. अमात्य (मर्थात् मन्त्री), 3. राष्ट्र (इसके अन्तर्गत कृषि, व्यापार एवं भूमि को पैमाइश परिपरिणत होती थी), 4. दुर्ग (अर्थात् शुल्क, दण्ड, पौनव, नगराध्यक्ष, लक्षणाध्यक्ष, मुद्राध्यक्ष, सुराध्यक्ष, शूनाध्यक्ष, सूत्राध्यक्ष, स्वर्णाध्यक्ष एवं शिल्पी आदि से वसूल किया जानेवाला धन), 5. कोष (अर्थात् राष्ट्र की समृद्धि एवं प्रजाजनों के सर्वांगीण सुखों के लिए संचित धन), 6. बल (मर्थात् विभिन्न सैन्य-शक्ति) तथा 7. सुहृद (अर्थात् मित्र)। षडंगबल'-षडंगबल अर्थात् छह अंगों से युक्त सेना-सारभूतसेना, पदाति सेना, अधिकारी सेना, सामान्य-सेवक श्रेणी सेना, मित्र सेना एवं पाटविक सेना । चतुरंगिरणी सेना-चतुरंगिणी सेना अर्थात् गजसेना, रथसेना, अश्वसेना एवं पैदलसेना धनुविधा-कवि ने धनुविद्या का उल्लेख विशेषरूप से किया है। प्रतीत होता है कि उस समय युद्ध में धनुष का प्रयोग प्रचुर मात्रा में किया जाता था। . वस्त्रप्रकार-कुन्दकुन्द भले ही प्रखण्ड दिगम्बर मुनि थे किन्तु एक उदाहरण में उन्होंने अपने समय के वस्त्रों का उल्लेख किया है12 । उनके अनुसार उस समय भारत में पाँच प्रकार के वस्त्रों का प्रचलन था 1. अंडज (कीड़ों द्वारा निर्मित धामे के बने हुए अर्थात् रेशमी वस्त्र)। 2. वोंडज (कपास द्वारा निर्मित सूती बस्त्र)। 3. रोमज (जानवरों के रोम से बनाये गये ऊनी वस्त्र) । 4. वक्कज (पेड़ की छाल द्वारा बनाये गये वल्कल वस्त्र) एवं 5. चर्मज (मृग, व्याघ्र प्रादि के चर्म से बनाये गये वस्त्र) । एक स्थान पर प्राचार्य कुन्दकुन्द ने सुई-तागे का भी उल्लेख किया है13 । इससे संकेत मिलता है कि कुन्दकुन्द-काल में सिलाई तथा कढ़ाई की हस्तकला का प्रचलन हो चुका था।
SR No.524759
Book TitleJain Vidya 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1990
Total Pages180
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size15 MB
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