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________________ कुन्दकुन्द - साहित्य में समकालीन सांस्कृतिक जीवन की झाँकियाँ - डॉ. (श्रीमती) विद्यावती जैन श्रमण संस्कृति के अमरगायक श्राचार्य कुन्दकुन्द युगप्रधान के रूप में माने गये हैं । उन्होंने मानव-जीवन को अमृतरस से सिंचन करने हेतु अध्यात्म-रस का जैसा अजस्र स्रोत प्रवाहित किया वह भारतीय चिन्तन के क्षेत्र में अनुपम है । जीवन एवं जगत् तथा जड़ एवं चेतन का गम्भीर अध्ययन, मानव मनोविज्ञान का अद्भुत विश्लेषण और प्राणिमात्र के प्रति उनकी अविरल करुरण भावना अभूतपूर्व है । यही कारण है कि प्राच्य एवं पाश्चात्य चिन्तकों ने उन्हें मानवता का महान् प्रतिष्ठाता माना है । काव्य-सौष्ठव आचार्य कुन्दकुन्द ने लगभग अपने छयान्नवे वर्ष के आयुष्य में 231 रचनाओं का प्रणयन किया जिनका मूल विषय द्रव्यानुयोग एवं चरणानुयोग है । यद्यपि इस प्रकार का साहित्य विचार प्रधान होने से बहुत अधिक लोकप्रिय नहीं होता क्योंकि सामान्यजनों का उसमें सहज प्रवेश नहीं हो पाता, किन्तु कुन्दकुन्द की यह विशेषता है कि उन्होंने अपनी समस्त रचनाओं में इतनी सरसता एवं मधुरता घोल दी और उसमें समकालीन लोकप्रचलित सरल भाषा और दैनिक लौकिकजीवन के उदाहरणों-प्रसंगों से उसे इस प्रकार सनाथ किया है कि आबाल-वृद्ध सभी नर-नारी उसका रसास्वादन कर अघाते नहीं ।
SR No.524759
Book TitleJain Vidya 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1990
Total Pages180
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size15 MB
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