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________________ जनविद्या जस्-शस्-सि-तो-दो-दु-प्रामि (आम्) 7/1 दीर्घः (दीर्घ) 1/1 (प्राकृत में) जस् शस्, इसि परे होने पर, तथा (पंचमी बहुवचन के प्रत्ययों में से) तो, दो→ो , दु→उ परे होने पर तथा प्राम् परे होने पर दीर्घ (हो जाता है)। अकारान्त पुल्लिग शब्दों में जस् (प्रथमा बहुवचन के प्रत्यय), शस् (द्वितीया बहुवचन के प्रत्यय) सि (पंचमी एकवचन के प्रत्यय) परे होने पर तथा (पंचमी एकवचन के प्रत्ययों में से) तो, प्रो, उ परे होने पर तथा प्राम् (षष्ठी बहुवचन के प्रत्यय) परे होने पर दीर्घ हो जाता है। देव (पु.)-(देव+जस्), जस् = 0 3/4 (देव+जस्) = (देव+०) = देवा (प्रथमा बहुवचन) (देव+शस), शस=0 3/4 (देव+ शस्) = (देव+०) = देवा (द्वितीया बहुवचन) (देव+ङसि), सि = तो, ओ, उ, हि, हिन्तो, ° 3/8 (देव+ङसि) = (देव+तो) = देवात्तो→ दवत्तो (पंचमी एकवचन) (दीर्घ स्वर के आगे यदि संयुक्त अक्षर हो तो दीर्घ स्वर का हस्व स्वर हो जाता है। (हस्वः संयोगे 1/84) ।) (देव+ङसि) = (देव+ो) = देवानो (पंचमी एकवचन) इसी प्रकार देवाउ, देवाहि, देवाहिन्तो, देवा (पंचमी एकवचन) (देव+त्तो, दो, दु) = [(देव+अांशिक भ्यस्)] आंशिक भ्यस् = तो, दो→ो , दु→3 3/12 (देव+अांशिक भ्यस्) = (देव+त्तो) = देवात्तो→ देवत्तो (1/84) (पंचमी बहुवचन) इसी प्रकार देवानो, देवाउ (पंचमी बहुवचन) (देव+आम्), प्राम् = ण 3,6 (देव+प्राम्) = (देव+ ण) (देवा+ ण) = देवाण (षष्ठी बहुवचन) 11. म्यसि वा 3/13 भ्यसि (भ्यस्) 7/1 वा= विकल्प से (प्राकृत में) भ्यस् परे होने पर विकल्प से (दीर्घ होता है)। प्रकारान्त पुल्लिग शब्दों में (बचा हुआ) भ्यस् (पंचमी बहुवचन के प्रत्यय) परे होने पर विकल्प से दीर्घ हो जाता है । देव (पु.)-(देव+ [बचा हुआ] भ्यम्) = (देव+ हि, हिन्तो, सुन्तो) = देवाहि, देवाहिन्तो, देवासुन्तो (पंचमी बहुवचन) 12. टाण-शस्येत् 3/14 टाण-शस्येत् [(शसि) + (एत्)] टाण-शसि (शस्) 7/1 एत् (एत्) 1/1
SR No.524758
Book TitleJain Vidya 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1988
Total Pages132
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size12 MB
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