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________________ जैनविद्या 6. ङसेस् तो-दो -दु-हि- हिन्तो-लुकः 8. 3/8 सेस् तो- दो-दु-हि- हिन्तो-लुक: [ ( ङसे :) + (तो) - (दो) - (दु) - (हि) - ( हिन्तो ) - (लुकः) ] 7. म्यसस् त्तो दो दुहि हिन्तो सुन्तो से: ( ङसि ) 6 / 1 [ (तो)- (दो) - (दु) - (हि) - ( हिन्तो ) - ( लुक) 1 / 3] ( प्राकृत में ) ङसि के स्थान पर तो, दोश्रो, दुउ, हि, हिन्तो और लोप (होते हैं) । अकारान्त पुल्लिंग शब्दों में ङसि (पंचमी एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर तो, श्रो, उ, हि, हिन्तो श्रौर होते हैं । देव (पु.) - ( देव + ङसि ) = (देव + त्तो, श्रो, उ, हि, हिन्तो और ० ) होते हैं । o 3/9 भ्यस् तो दो दुहि हिन्तो सुन्तो [ ( भ्यसः ) + (तो)] दो दु हि हिन्तो सुन्तो यस: ( भ्यस् ) 6 / 1 तो (त्तो) 1/1, दो (दो) 1 / 1 दु (दु) 1 / 1 हि (हि) 1/1 हिन्तो ( हिन्तो) 1 / 1 सुन्तो ( सुन्तो) 1 / 1 ( प्राकृत में ) भ्यस् के स्थान पर तो, दोश्रो, दुउ, हि, हिन्तो और सुन्तो ( होते हैं) । 83 अकारान्त पुल्लिंग शब्दों में भ्यस् ( पंचमी बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर तो, श्रो, उ, हि, हिन्तो और सुन्तो होते हैं । देव (पु.) - ( देव + भ्यस् ) = (देव + त्तो, श्रो, उ, हि, हिन्तो, सुन्तो) इसः स्सः 3/10 इस: ( ङस् ) 6/1 स्स: ( स ) 1 / 1 ( प्राकृत में ) ङस् के स्थान पर स्स ( होता है ) । अकारान्त पुल्लिंग शब्दों में ङस् ( षष्ठी एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर स होता है । देव (पु.) - ( देव + ङस् ) = ( देव + स्स) = देवस्स ( षष्ठी एकवचन ) 9. डे म्मि डे: 3/11 डेम्मि डे : (ङि ) 6/1 ( प्राकृत में ) ङि के स्थान पर डेए और म्मि ( होते हैं) । अकारान्त पुल्लिंग शब्दों में ङि (सप्तमी एकवचन के प्रत्यय ) मि होते हैं । देव (पु.) - ( देव + ङि) = (देव + ए, म्मि) = देवे, देवम्मि (सप्तमी एकवचन ) 3/12 जस्-शस्-ङसि-तो-दो- [ (दु) + (आमि ) ] दीर्घः 10 जस् - शस् - ङसि तो- दो- द्वामि दीर्घः स्थान पर ए और
SR No.524758
Book TitleJain Vidya 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1988
Total Pages132
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size12 MB
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