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________________ जैन विद्या 79 अणुलघुमहिमाद्यः सिद्धयः स्युद्वितीपात् । सुरनरखेचरेषां सम्पदश्चान्य-भेदात् ।। 48 ॥ ब्रह्माण्डं यस्यमध्ये महादपि सदृशं दृश्यते रेणुनेदम् । तस्मिन्नाकाशरंध्रे निरवधिनि मनो दूरमापोज्यसम्यक् ॥ तेजोराशौ परेऽस्मिन् परिहत सदसवृत्तितो लब्धलक्षः । हे दक्षाध्यक्षरूपे ! भव भवसि भवाम्बोधि पारावलोकी ।। 73 ।। डॉ. नेमिचंद्र जैन शास्त्री, ज्योतिषाचार्य स्वीकारते हैं कि जैन रहस्यवाद का निरूपण रहस्यवाद के रूप में सर्वप्रथम इन्हीं (जोइन्दु) से प्रारंभ होता है । यों तो कुन्दकुन्द, वट्टकेर और शिवार्य की रचनाओं में भी रहस्यवाद के तत्त्व विद्यमान हैं पर परमार्थतः रहस्यवाद का रूप जोइन्दु की रचनाओं में ही प्राप्त होता है । .......इस प्रकार जोइन्दु........ऐसे सर्वप्रथम कवि हैं जिन्होंने क्रांतिकारी विचारों के साथ आत्मिक रहस्यवाद की प्रतिष्ठा कर मोक्ष का मार्ग बतलाया है ।20 इस प्रकार सबका निष्कर्ष निम्न प्रकार है 1. योगीन्द्र या जोइंदु 6ठी शताब्दी के कवि नहीं हैं । अकलंक व विद्यानन्दि का उल्लेख करने से इन्हें आठवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध व नवमी शताब्दी के पूर्वार्द्ध का कवि होना चाहिए। 2. जोइंदु की संस्कृत भाषामयी 'अमृताशीति' व प्राकृत भाषामयी 'निजात्माष्टक' कृतियों के प्रमाणिकरूप से मिल जाने के बाद अपभ्रंश के साथ-साथ प्राकृत और संस्कृत पर भी आपका समान अधिकार सिद्ध होता है । ___ 3. सिद्धान्तचक्रवर्ती नयकीर्तिदेव के शिष्य व अनेक ग्रंथों के विश्रुत कन्नड़ टीकाकार मुनि कालचन्द्र के आधार पर 'अमृताशीति' व 'निजातमाष्टक'-इन दोनों ग्रंथों को हम 'परमात्मप्रकाश' व 'योगसार' के समान ही जो इंदु की प्रामाणिक कृतियां मान सकते हैं । 1. श्रीमद् राजचंद्र पाश्रम, अगास (गुजरात) से प्रकाशित परमात्मप्रकाश-योगसार की भूमिका, डॉ. ए. एन. उपाध्ये । 2. छन्द क्रमांक 59। 3. छन्द क्रमांक 68 । 4. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग 1, पृष्ठ 31 । 5. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग 3, पृष्ठ 554 । 6. परमात्मप्रकाश--योगसार की डॉ. उपाध्ये की प्रस्तावना । 7. क्रमशः पृ. सं. 202, 92, 361, 251, तथा पृ. 257वें पर हैं । 8. अमृताशीति की मुनि बालचन्द्रकृत कन्नड़ टीका की उत्थानिका ।
SR No.524758
Book TitleJain Vidya 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1988
Total Pages132
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size12 MB
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