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________________ 18 जैनविद्या 'परमात्मप्रकाश' न केवल अध्यात्मशास्त्र, अपितु नीतिशास्त्र की दृष्टि से भी अनुपम ग्रन्थ है । मध्यकालीन सन्त कवि तुलसी, कबीर आदि के दोहों ने नैतिक और आध्यात्मिक उन्नयन के क्षेत्र में जो विस्मयकारी काम किया, वही काम इनके आठ नौ शतक पूर्ववर्ती जोइंदु के प्रभावकारी दोहों ने किया था। इसलिए परमात्मप्रकाश का गीता के श्लोकों के साथ ही मध्यकालीन सन्तकवियों के दोहों का समानान्तर अध्ययन अपेक्षित है । सच पूछिए तो मनीषी जनकवि जोइंदु (जो ‘पाहुडदोहा' के स्वानामधन्य रचयिता मुनि रामसिंह के ही प्रतिरूप माने जाते हैं) का ‘परमात्मप्रकाश' सांस्कृतिक उत्कर्ष की दृष्टि से जनचेतना में आत्मचेतना को प्रतिष्ठित करनेवाला अपूर्व आगमकल्प ग्रन्थ है ।
SR No.524758
Book TitleJain Vidya 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1988
Total Pages132
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size12 MB
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