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जनविद्या
ऊण, उप्राण के अन्त के ण पर तथा पु. नपुं. स्त्री. शब्दों से परे सि (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) आदि के स्थान पर ण और सु होने पर विकल्प से उन पर अनुस्वार भी हो जाता है। देव - देवेण = देवेणं
(तृतीया एकवचन) देवाण = देवाणं
- (षष्ठी बहुवचन) देवेसु = देवेसुं
(सप्तमी बहुवचन) भण (क्रिया)-(भण+ऊण) = भणिऊण = भणिउणं
(भण+ उपाण) = भणिउपाण = भणिउपाणं
अकारान्त पुल्लिग (देव) एकवचन
बहुवचन प्र. देवो (1)
देवा (2, 10) द्वि. देवं (3)
देवा (2, 10), देवे (12) तृ. देवेण (4, 12)
देवेहि, देवेहि, देवेहि (13) देवेणं (60) च. देवस्स (57, 8)
देवाण (57, 4, 10) देवाय (58)
देवाणं (60) पं. देवत्तो, देवानो, देवाउ
देवत्तो, देवाओ, देवाउ (10) दवाहि, देवाहिन्तो, देवा (10) देवाहि, देवाहिन्तो, देवासुन्तो (11)
देवेहि, देवेहिन्तो, देवेसुन्तो (13) प. देवस्स (8)
देवाण (4, 10)
देवाणं (60) स. देवे, देवम्मि (9)
देवेसु (13)
देवेसुं (60) सं. हे देवो, हे देव, हे देवा (30) हे देवा (59)
इकारान्त पुल्लिग (हरि) एकवचन
बहुवचन प्र. हरी (16)
हरउ, हरप्रो (17)
हरिणो, हरी (19, 2, 10, 50) द्वि. हरिं (3, 50)
हरी, हरिणो (15, 19) तृ. हरिणा (21)
हरीहि, हरीहि, हरीहिं (14) च. हरिणो (57, 20)
हरीण (4, 10, 50, 57) हरिस्स (50, 8)
हरीणं (60)