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________________ जनविद्या 105 स्वर एत्→ए नहीं होता है। प्राकारान्त स्त्रीलिंग, इकारान्त, उकारान्त पुल्लिग, नपुंसकलिंग व स्त्रीलिंग शब्दों से परे शस् (द्वितीया बहुवचन का प्रत्यय), भिस् (तृतीया बहुवचन का प्रत्यय), टा (तृतीया एकवचन का प्रत्यय), भ्यस् (पंचमी एकवचन का प्रत्यय) और सुप् (सप्तमी एकवचन का प्रत्यय) होने पर अन्त्य स्वर ए नहीं होता । जो रूप बनते हैं वे यथास्थान दे दिए गए हैं । 56. द्विवचनस्य बहुवचनम् 3/130 द्विवचनस्य (द्विवचन) 6/1 बहुवचनम् (बहुवचन) 1/1 (प्राकृत में) द्विवचन के स्थान पर बहुवचन (होता है)। प्राकृत में द्विवचन नहीं होता है और उसके लिए बहुवचन का प्रयोग किया । जाता है। 57. चतुर्थ्याः षष्ठी 3/131 चतुर्थ्याः (चतुर्थी) 6/1 षष्ठी (षष्ठी) 1/1 प्राकृत में चतुर्थी के स्थान पर षष्ठी का प्रयोग होता है । 58. तादर्थ्य-डे व 3/132 तादर्थ्य-डे व [(डे:) + (वा)] [(तादर्थ्य)-डे: (ङ) 1/1] वा (अ) = विकल्प से (प्राकृत में) तादर्थ्य अर्थ में (संस्कृत का) के प्रत्यय विकल्प से होता है। 'उसके लिए' अर्थ में संस्कृत का डे- प्राय प्रत्यय अकारान्त में विकल्प से होता है । देव (पु.)-(देव+डे) = (देव+प्राय) = देवाय (चतुर्थी एकवचन) 59. शेषं संस्कृतवत् सिद्धम् 4/448 • शेषं संस्कृतवत् सिद्धम् [(शेषम्) + (संस्कृतवत्)]-सिद्धम् शेषम् (शेष) 1/1 संस्कृतवत् (अ) = संस्कृत के समान सिद्धम् (सिद्ध) 1/1 प्राकृत में बचे हुए रूप आदि संस्कृत के समान नियमों से सिद्ध (होते हैं) । 60. क्त्वा-स्यादेर्ण-स्वोर्वा 1/27 क्त्वा स्यादेर्ण-स्वोर्वा [(सि) + (प्रादेः) + (ण)-(स्वोः) + (वा)] [(क्त्वा)-(सि)-(आदि) 6/1] [(ण)-(सु) 7/2] वा (अ) = विकल्प से (प्राकृत में) क्त्वा→ ऊण, उप्राण के अन्त के रण पर तथा (विभिन्न शब्दों से परे) मि आदि के स्थान पर रण और सु होने पर विकल्प से उन पर अनुस्वार भी हो जाता है।
SR No.524758
Book TitleJain Vidya 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1988
Total Pages132
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size12 MB
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