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जैनविद्या
(प्राकृत में) (स्त्रीलिंग में) टा, सि, ङस् और ङि के स्थान पर अत्→प्र,
आत्→ प्रा, इत्→ इ, एत्→ ए विकल्प से (होते हैं) और (साथ में पूर्व में स्थित स्वर दीर्घ हो जाते हैं, यदि ह्रस्व हों तो) आकारान्त, इकारान्त और उकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों में टा (तृतीया एकवचन का प्रत्यय), इसि (पंचमी एकवचन का प्रत्यय), उस् (षष्ठी एकवचन का प्रत्यय) और ङि (सप्तमी एकवचन का प्रत्यय) के स्थान पर अ, आ, इ और ए विकल्प से हो जाते हैं और साथ में पूर्व में स्थित स्वर दीर्घ हो जाते हैं, यदि ह्रस्व हों तो।
कहा (स्त्री.)-(कहा+टा) = (कहा+अ, इ, ए,) = कहान, कहाइ, कहाए
(तृतीया एकवचन) (नात प्रात् 3/30 सूत्र से आकारान्त में 'पा' नहीं होता है) (कहा+डसि) = (कहा+अ, इ, ए) = कहान, कहाइ, कहाए
(पंचमी एकवचन) (कहा+ङस्) = (कहा+अ, इ, ए) = कहान, कहाइ, कहाए
(षष्ठी एकवचन) (कहा+डि) = (कहा + अ,इ,ए) = कहान कहाइ, कहाए
(सप्तमी एकवचन) मइ (स्त्री.)-(मइ+टा) = (मई+अ, आ, इ, ए) = मईन, मईया, मईइ, मईए
(तृतीया एकवचन) (मइ+ङसि) = (मई+अ.प्रा, इ, ए) = मईअ, मईआ, मईड, मईए
(पंचमी एकवचन) (मइ+ ङस्) = (मई+अ, आ, इ, ए) = मई, मईआ, मईइ, मईए
(षष्ठी एकवचन) (मइ+ङि) = (मई+अ, आ, इ, ए) = मईअ, मईपा, मईइ, मईए इसी प्रकार
(सप्तमी एकवचन) लच्छी (स्त्री.) लच्छीअ, लच्छीमा, लच्छीइ, लच्छीए (तृतीया एकवचन)
लच्छीम, लच्छीमा, लच्छीइ, लच्छीए (पंचमी एकवचन) लच्छीअ, लच्छीमा, लच्छीइ, लच्छीए (षष्ठी एकवचन)
लच्छीम, लच्छीमा, लच्छीइ, लच्छीए (सप्तमी एकवचन) घेणु (स्त्री.) घेणूअ, घेणा , घेणूइ, घेणूए
(तृतीया एकवचन) घेणूम, घेणूया, घेणूइ, घेणुए
(पंचमी एकवचन) घेणूम, घेणूया, घेणूइ घेणूए
(षष्ठी एचवचन) घेणूम, घेणूमा, घेणूइ, घेणूए
(सप्तमी एकवचन) बहू (स्त्री.) बहूअ, बहूपा, बहूइ, बहूए
(तृतीया एकवचन)