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________________ जैनविद्या 87 16. अक्लीबे सौ 3/19 अक्लीबे (अक्लीब) 7/1 सौ (सि) 7/1 (प्राकृत में) अक्लीब में अर्थात् पुल्लिग-स्त्रीलिंग (शब्दों में) सि परे होने पर (दीर्घ हो जाता है)। इकारान्त, उकारान्त पुल्लिग-स्त्रीलिंग शब्दों में सि (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर उनका दीर्घ हो जाता है। (और नियमानुसार सि का लोप हो जाता हरि (पु.)-(हरि+सि) = (हरी+सि) = (हरी+०) = हरी __(प्रथमा बहुवचन) मइ (स्त्री.)-(मइ+सि) = (मई+सि) = (मई+०) = मई (प्रथमा बहुवचन) साहु (पु.)-(साहु + सि) = (साहू + सि) = (साहू +०) = साहू (प्रथमा बहुवचन) घेणु (स्त्री.)-(घेणु + सि) = (घेणू+सि) = (घेणू + ०) = घेणू (प्रथमा एकवचन) इसी प्रकार गामणी (पु), सयंभू (पु.), लच्छी (स्त्री.) और बहू (स्त्री.) के रूप बनेंगे। 17. पुंसि जसो डउ डग्रो वा 3/20 पुंसि जसो उउ डनो वा [(जसः) + (डउ)] डो वा पुंसि (पुंस्) 7/1जसः (जस्) 6/1 डउ (डउ) 1/1 डो (डप्रो) 1/| वा = विकल्प से (प्राकृत में) (इकारान्त-उकारान्त) पुल्लिग शब्दों में जस् के स्थान पर डउ→ अउ तथा डओ, अग्रो विकल्प से (होता है)। इकारान्त-उकारान्त पुल्लिग शब्दों में जस् (प्रथमा बहुवचन का प्रत्यय) के स्थान पर प्रउ तथा अप्रो विकल्प से होता है। हरि (पु.)-(हरि+जस्) = (हरि+अउ, अो) = हरउ, हरो (प्रथमा बहुवचन) गामणी (पु.)- (गामणी+जस्) = (गामणी+अउ, अनो) = गामणउ, गामणो (प्रथमा वहुवचन) साहु (पु.)-(साहु + जस्) = (साहु + अउ, अनो) = साहउ, साहो (प्रथमा बहुवचन) सयंभू (पु)-(सयंभू+जस्) = (सयंभू + अउ, अनो) = सयंभउ, सयंभो (प्रथमा बहुवचन) 18. वोतो डवो 3/21 वोतो डवो [(वा) + (उत:) + (डवो)]
SR No.524758
Book TitleJain Vidya 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1988
Total Pages132
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size12 MB
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