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जैनविद्या
वारि (नपुं)-वारीहि, वारीहि, वारीहिं (तृतीया बहुवचन) मइ (स्त्री-मईहि, मईहिं, महहिं (तृतीया बहुवचन) साहु (पु.)-(साहु+भिस्) = (साहु+ हि. हिँ, हिं)
= साहूहि, साहूहिँ, साहहिं (तृतीया बहुवचन) महु (नपुं)-महूहि, महूहि, महहिं (तृतीया बहुवचन) घेणु (स्त्री)-धेहि, धेहि, धेहि (तृतीया बहुवचन) हरि (पु.)-(हरि+म्यस्) म्यस् = तो, ओ, उ, हिन्तो, सुन्तो (हि का निषेध सूत्र
3/127) (3/9), (3/124) (हरि+म्यस्) = (हरि+त्तो, ओ, उ, हिन्तो, सुन्तो) । = हरीत्तो→ हरितो (1/84), हरीमो, हरीउ, हरीहिन्तो, हरीसुन्तो
(पंचमी बहुवचन) वारि (स्त्री) वारीत्तो→ वारित्तो 1/84, वारीनो, वारीउ, वारीहिन्तो वारीसुन्तो
(पंचमी बहुवचन) मइ (स्त्री)-मइत्तो → मईत्तो 1/84 मईप्रो, मईउ, मईहिन्तो, मईसुन्तो
__ (पंचमी बहुवचन) साहु (पु.)-साहूत्तो→ साहुत्तो (1/84), साहो, साहूउ, साहूहिन्तो, साहसुन्तो
__ (पंचमी बहुवचन) महु (नपुं)-महत्तो, महो, महूउ, महूहिन्तो, महसुन्तो (पंचमी बहुवचन) घेणु (स्त्री)-घेणुत्तो, घेणूमो, घेणूउ, घेणूहिन्तो, घेणूसुन्तो । (पंचमी बहुवचन) हरि (पु.)-(हरि + सुप्), सुप्→ सु (3/15), (3/124)
(हरि+सु) = हरीसु इसी प्रकार-वारीसु, मईसु, साहूसु महूसु तथा घेणूसु रूप बनेंगे। इसी प्रकार-गामणी (पु), सयंभू (पु.), लच्छी (स्त्री) और बहू (स्त्री.) के
रूप तीनों में बनेंगे।
15. लुप्ते शसि 3/18
लुप्ते (लुप्त) मुकृ 7/1 शसि (शस्) 7/1 (प्राकृत में) लोप किए गए शस् के होने पर (दीर्घ हो जाता है) । इकारान्त, उकारान्त पुल्लिग-स्त्रीलिंग शब्दों से परे शस् (द्वितीया-बहुवचन के प्रत्यय) का लोप होने पर वे शब्द दीर्घ हो जाते हैं। हरि (पु.)-(हरि+ शस्) = (हरि+०) = हरी (द्वितीया बहुवचन) मइ (स्त्री.)-(मइ+ शस्) = (मइ+०) = मई (द्वितीया बहुवचन) साहु (पु.)-(साहु+ शस्) = (साहु+०) = साहू (द्वितीया बहुवचन) घेणु (स्त्री.)-(धेणु+ शस्) = (घेणु+) = घेणू (द्वितीया बहुवचन) इसी प्रकार गामणी (पु.), सयंभू (पु.), लच्छी (स्त्री.) और बहू (स्त्री) के रूप बनेंगे।