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जैनविद्या
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पुल्लिग, नपुंसकलिंग और स्त्रीलिंग में एतत्→ एत (पु. नपु.), एता (स्त्री) से परे (सि और पम् होने पर) (दोनों के स्थान पर) क्रमशः एहो, एहु और एह (होता हैं) । अपभ्रंश में पुल्लिग, नपुंसकलिंग और स्त्रीलिंग में एत (पु. नपु.), एता (स्त्री.) से परे सि (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) और अम् (द्वितीया एकवचन का प्रत्यय) होने पर दोनों के स्थान पर क्रमशः एहो, एहु तथा एह होते हैं । एत (पु. )-(एत + सि ) = एहो (प्रथमा एकवचन)
(एत + अम्) = एहो (द्वितीया एकवचन) एत (नपुं.)-(एत + सि ) = एहु (प्रथमा एकवचन)
(एत + अम्) = एहु (द्वितीया एकवचन) एता (स्त्री.)-(एता+सि ) = एह (प्रथमा एकवचन)
(एता+सि ) = एह (द्वितीया एकवचन) _34. एइर्जस्-शसोः 4/363
एइर्जस् [(एइः) + (जस्) ]-शसोः एइः (एइ) 1/1 [(जस्)-(शस्) 7/2] (पुल्लिग, नपुंसकलिंग व स्त्रीलिंग में) (एत (पु., नपुं.), एता (स्त्री.) से परे) जस् पौर शस् होने पर (दोनों के स्थान पर) एइ (होता है)। अपभ्रंश में पुल्लिग, नपुंसकलिंग और स्त्रीलिंग में एत (पु., नपुं.), एता (स्त्री.) से परे जस् (प्रथमा बहुवचन का प्रत्यय) तथा शस् (द्वितीया बहुवचन का प्रत्यय) होने पर दोनों के स्थान पर एइ होता है । एत (पु.)-(एत+जस्) = एइ (प्रथमा बहुवचन)
(एत+शस्) = एइ (द्वितीया बहुवचन) .... एत (नपुं.)-(एत+जस्) = एइ (प्रथमा बहुवचन)
___एइ (द्वितीया बहुवचन) ... एता (स्त्री.)-(एता+जस्) = एइ (प्रथमा बहुवचन)
(एता+शस्) = एइ (द्वितीया बहुवचन) 35. अदस ओई 4/364
[(प्रदसः)+ (मोइ)] अवसः (अदस्) 5/1 मोइ (ओइ) 1/1 (पुल्लिग, नपुंसकलिंग व स्त्रीलिंग में) अदस्→ प्रमु से परे (जस् और शस् होने पर) (दोनों के स्थान पर) अोइ (होता है)।