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________________ 68 । जनविद्या सोपानों का व्यावहारिक स्तर पर अनुभव ही मनुष्य और उसके प्रति श्रद्धा और विश्वास की लौ प्रतिष्ठित कर सकता है । कनकामर की यह रचना इसी दिशा में एक अतिविशिष्ट प्रयत्न समझा जाना चाहिये। 1. जसु दंसणे हरि उवसमु सरेइ, करिकुंभहो गाहु ए सो करेइ । अवरुप्परु वइरई जे वहंति, तहो दंसरणे मदउ मणे लिहंति । जसु दंसणे अणुवय के वि लिंति, जिणु छंडिवि अण्णहिं मणु ण दिति । केहि मि मरिण गहियई गुणवयाइँ, प्रवराई मि पुणु सिक्खावयाई । 9.1.5-8 2. धी धी असुहावउ मच्चलोउ, दुहकारणु मणुवह अंगभोउ । ____रयणायरतुल्लउ जेत्थु दुक्खु, महुबिंदुसमाणउ भोयसुक्खु । हा माणउ दुक्खई दड्ढतणु विरसु रसंतउ जहिं मरइ । भणु णिग्घिणु विसयासत्तमणु सो छडिवि को तहिहं रइ करइ ॥ 9.4.7-10 3. णिज्झायइ जो अणुवेक्ख चल वइरायभावसंपत्तउ । सो सुरहरमंडणु होइ गरु सुललियमणहरगत्तउ ॥ . 9.6.9-10 4. अणुवेक्खउ एयउ मणे सरंतु, विसयाण परम्मुहु सइँ करंतु । महिलाण णिवहु तिणसमु गणंतु, सवणाण पियारी गिर भणंतु । मणु चवलु चलंतउ संथवंतु, संपत्तउ गंदणवणु भमंतु । जं किण्णरखेयररववमालु, तं विट्ठउ गंदणवणु विसालु । कोहाइजलणविद्दमणमेहु, जो गाणकिरणविप्फरियदेहु । जो कामकिरायहो हिययसल्लु, जो मोहभडहो पडिखलणमल्ल । दहलक्खणधम्महो जो णिवासु, परसमयकयारहो जो हुवासु । जो तवसिरिकामिणिवयणरत्तु जो कम्मणिबंधणबंधचत्तु । घत्ता- जो जम्मणमरणविणासयर दुविहमेयसंजमणिलउ । सो उववणे दिट्ठउ सीलणिहि सिवकामिणिवयणहो वरतिलउ । 9.18.1-10 5. सो भणइ भडारा हरियछम्म, महो को वि पयासहि परमषम्म । घत्ता-जें कियई पणासइ दुहणिवहु परिवड्इ सिवसुहु अणुवमउ । त कहहि भडारा करुण करि इहलोयहं भव्वहं सग्गमउ ॥ 6. जो धम्मतर राय, सो होई दुहु भेय । वयजलई सिंचियउ, वड्ढेइ सुत्थियउ । 7. जो एयई अणुवयगुणवयई सिक्खावय पालइ दुद्धरई। ... सो - सासयवहुमुहलंपडउ पावेसइ सुक्खपरपंरई॥ 9.19.8-10 . 9.20.3-4 9.23.9-10
SR No.524757
Book TitleJain Vidya 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1988
Total Pages112
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size11 MB
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