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________________ 54 शुक 9. सर्वस्व त्याग कर राजा का योगी हो जाना और पद्मावती की खोज में सिंहलद्वीप प्रस्थान करना । 10. सात समुद्र पार कर राजा का सिंहलद्वीप पहुँच जाना । 11. कामसंतप्त पद्मावती से शुक्र का मिलन और सारा समाचार कथन । 12. सिंहलद्वीप के शिवमन्दिर में रत्नसेन की अवस्थिति और वहां वसंतपंचमी के दिन पद्मावती का उससे मिलने पहुंचना । जैन विद्या के साथ 13. पद्मावती को देखकर राजा का मूर्च्छित हो जाना और पद्मावती द्वारा हृदय पर चंदन का लेप कर कुछ संदेश लिखकर चला जाना | 14. मूर्छा दूर होने पर दुःखी होकर राजा द्वारा जल मरने का निश्चय करना । 15. पार्वती द्वारा राजा के प्रेम की परीक्षा । 16. सिद्धिगुटका पाकर पद्मावती प्रासाद में वज्रकपाट का खुलना और उसमें राजा का प्रवेश तथा गंधर्वसेन से पद्मावती का कर याचन । 17. गंधर्वसेन द्वारा रत्नसेन का बंदी होना और पद्मावती द्वारा रत्नसेन को संदेश भेजा जाना । 18. युद्ध की घोषणा, रत्नसेन की प्रोर से हनुमान, विष्णु और शिव देव का साथ देना, गंधर्वसेन द्वारा हार मानना । 19. रत्नसेन और पद्मावती का पाणिग्रहण संस्कार । 20. नागमति द्वारा पक्षी के माध्यम से रत्नसेन के पास संदेश भेजना । 21. पक्षी द्वारा सिंहल जाना और रत्नसेन से नागमति का संदेश ( विरह व्यथा) कथन । 22. रत्नसेन का दहेज- सामग्री व पद्मावती को लेकर सिंहल से प्रस्थान | 23. राक्षस के कारण समुद्र में रत्नसेन के जहाज का डूबना और समुद्रपुत्री लक्ष्मी के माध्यम से रत्नसेन और पद्मावती का पुनर्मिलन । 24. समुद्र द्वारा रत्नसेन को पारस पत्थर आदि देकर विदा करना । 25. जगन्नाथपुरी के दर्शन करते हुए रत्नसेन और पद्मावती का चितोड़ वापिस पहुंचना । 14226. देव द्वारा नागमति को रत्नसेन के पहुंचने की सूचना और उसके चित्तौड़ पहुंचने पर ईर्ष्या पद्मावती को दूसरे महल में ठहराना । 27. रावि में नागमति से मिलने पर राजा द्वारा दोनों रानियों पर समान दृष्टि रखने का वचन और दोनों रानियों का प्रसन्न होना । 28. राघवचेतन नामक पंडित द्वारा काव्य सुनाकर रत्नसेन को वश में कर लेना । 29. राघव द्वारा यक्षिणी - सिद्धि से प्रतिपदा को दूज का चंद्रमा दिखाया जाना और पंडितों का अपमान होने पर राजा द्वारा देश निष्कासन | 30. राघवचेतन द्वारा पद्मावती का दर्शन, उसका कंगन ग्रहण और फिर मोहित होकर
SR No.524757
Book TitleJain Vidya 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1988
Total Pages112
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size11 MB
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