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जनविद्या
53 अवांतर कथानों की कथानकरूढ़ियाँ 1. मंत्रशक्ति के प्रभाव से राक्षस को वश में करना। 2. अज्ञान के कारण आपत्ति । 3. दुर्जनसंगति का फल । 4. सज्जनसंगति का फल । 5. पति-पत्नी के निराशाजनक वियोग के पश्चात् भी संयोग। मदनमंजूषा का विद्याधरों " द्वारा अपहरण और फिर पुनर्मिलन । 6. शुक शास्त्रज्ञ था। उसके कथन से तेजस्वी अश्व की सूचना । अश्व राजा को समुद्र
पार छोहार द्वीप में उड़ा ले गया। वहां रत्नलेखा से विवाह, लौटते समय समुद्र में
नौका छिन्न-भिन्न । 7. निदान-बंध के कारण हर्ष-शोक का होना । 8. शुभ शकुन का फल शुभ होता है। 9. विद्याधर शुक-रूप धारण कर अश्व को समुद्र पार ले गया और राजासहित किसी द्वीप
में पहुंचा, वहां रत्नलेखा से विवाह, वापसी में नौका का समुद्र में डूबना, सबका विछोह । रानी का कुट्टिनी के पास पहुंचना और सार-पासे में हरा देनेवाले के साथ
विवाह की प्रतिज्ञा । अरिदमन से उसका मिलना । 10. स्त्रीलिंग का छेदन सम्भव, विद्याधरी के प्रभाव से प्राश्चर्य-भरे कार्य सम्पन्न ।
करकण्डचरिउ की इन कथानकरूढ़ियों के परिप्रेक्ष्य में जायसी के पद्मावत की कथानकरूढ़ियों को भी हम समझ लें1. प्रादिपुरुष ईश्वर (ब्रह्म) का पुनीत स्मरण जिसने सारी सृष्टि का निर्माण किया है । 2. सिंहलद्वीप जहां राजा गंधर्वसेन और रानी चम्पावती की सुन्दर पुत्री पद्मावती थी। 3. संदेशवाहक हीरामन नामक शुक जो महापण्डित और वेदज्ञ था।
4. 'बर की खोज में गये शुकं का बहेलिए द्वारा अपहरण और सिंहलद्वीप गये चित्तौड़ के , ब्राह्मण द्वारा उसका क्रय। . .
. .. 5. चित्रसेन के पुत्र रत्नसेन का पद्मावती के साथ चित्तौड़ के ज्योतिषियों द्वारा सम्भावित - 'विकाह की घोषणा ... ... ...... .
... 6. रत्नसेन द्वारा ब्राह्मण से शुक का क्रय । 7. रत्नसेन की पत्नी नागमती द्वारा पूछे जाने पर शुक द्वारा पद्मावती के सौंदर्य का वर्णन
और ईर्ष्यावश शुक को मारने की प्रायोजना। 8. हीरामन शुक द्वारा राजा से पद्मावती का नख-शिख वर्णन और उसके प्रति मोहित
हो जाना। - . :: .. . .